भूमिका
शिक्षा एक विकास की प्रक्रिया मानी जाती है। कोठारी शिक्षा आयोग ने प्रथम वाक्य में यही कहा है। “भारत के भाग्य का निर्माण उसकी कक्षाओं के अन्तर्गत किया जा रहा है।” (Destiny of India is being shaped in her Classroom) कक्षा के अन्तर्गत शिक्षक पाठ्यवस्तु का सम्पादन करता है। पाठ्यक्रम का विकास समाज तथा राष्ट्र की आवश्यकताओं के लिये किया जाता है। शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन पाठ्यक्रम ही है। शिक्षा की प्रक्रिया का आधार पाठ्यक्रम का प्रारूप होता है। सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ शिक्षा के उद्देश्यों तथा पाठ्यक्रम के प्रारूप में भी परिवर्तन आवश्यक होता है। इसलिये पाठ्यक्रम विकास की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। पाठ्यक्रम विकास की प्रक्रिया प्राथमिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक चलती रहती है। यह कार्य अध्ययन समितियों, परिषदो तथा अध्ययन बोर्ड द्वारा किया जाता है।
शिक्षा की प्रक्रिया में विभिन्न युगों में विभिन्न पक्षों को प्राथमिकता दी जाती रही है। कभी शिक्षकों को, कभी छात्रों को, कभी पाठ्यवस्तु के शिक्षण को तो कभी शिक्षण उद्देश्यों को महत्व दिया जाता रहा है। परन्तु आज उद्देश्यों को प्राथमिकता दी जाती है। शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुदेशन तथा अधिगम की प्रक्रियाओं की व्यवस्था में उद्देश्यों को ही महत्व दिया जाता है यहाँ तक शिक्षण और परीक्षण की क्रियाओं में भी उद्देश्यों को ही महत्व दिया जाता है। शिक्षण उद्देश्य साधन नहीं है अपितु साध्य है बिना साधन के उद्देश्यों की व्यवस्था एवं प्राप्ति सम्भव नहीं हो सकती है। यही कारण है शिक्षा में नवीन प्रत्ययों, आयामों तथा प्रवर्तनों में बड़ी तीव्रता से वृद्धि हो रही है परन्तु उसके कोई ठोस परिणाम नहीं प्राप्त हो सके हैं। प्रबन्धन का साधन पाठ्यक्रम तथा पाठ्य-पुस्तकें हैं। पाठ्यक्रम तथा पाठ्य-पुस्तकों पर इतना ध्यान नहीं दिया गया है। जितना उद्देश्यों पर दिया है। दोनों का समन्वय और विकास गति एक साथ होगी तभी शिक्षा की प्रक्रिया सार्थक एवं प्रभावी हो सकती है। शिक्षा के शोध कार्यों में भी पाठ्यक्रम तथा पाठ्य-पुस्तकों पर ध्यान नहीं दिया गया है। उत्तम प्रकार की पुस्तकों का भी अभाव रहा है।
इस पुस्तक में प्रभावशाली शिक्षण प्रक्रिया के लिये- ‘पाठ्क्रम विकास एवं अनुदेशन’ (Curriculum Development and Instruction) को प्रस्तुत किया गया है। पाठ्यवस्तु को पाँच खण्डों में विभाजित किया गया है। प्रथम खण्ड-‘पाठ्यक्रम नियोजन एवं निर्माण’ को चार अध्यायों में दिया है। पाठ्यक्रम नियोजन एवं निर्माण को
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