भूमिका
लेखकगणों ने अपनी पुस्तक अनुसंधान एवं अध्यापक शिक्षा के मुद्दे में विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को लक्ष्य बनाकर विषय-वस्तु प्रस्तुत की है। प्रस्तुत पुस्तक में पठनीय सामग्री का विशाल भण्डार है। समस्त पाठ्यक्रम को विशेष रूप में प्रस्तुत किया गया है। बालक के व्यक्तित्त्व के विकास हेतु तीनों पक्षों- संज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्ष हेतु शिक्षक क्या करें, कैसे करें तथा कब करें, इन सभी बिन्दुओं पर विशेष बल दिया गया है। शिक्षण की तीनों अवस्थाओं अर्थात् पूर्व क्रियाकाल, अतः क्रियात्मक एवं शिक्षण के पश्चात् की क्रियाओं (उत्तर क्रिया काल) पर सशक्त भाषा शैली के माध्यम से विषय-वस्तु प्रस्तुत की गई। विषय शिक्षण की विषय-वस्तु के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों पक्षों को लेखकों ने सरल, स्पष्ट तथा उपयुक्त उदाहरणों की सहायता से बोधगम्य ढंग से प्रस्तुत किया है, जो कि पुस्तक के घनत्व को बढ़ाता है। किसी विषय के बारे में बहुत कुछ कह जाना एक अत्यन्त जटिल कार्य है। अध्यापक शिक्षा के बारे में भी बिना उसका कुछ ज्ञान प्राप्त किए प्रारम्भ में ही विद्यार्थियों को उसका गहन अध्ययन करा देना मात्र एक कल्पना से अधिक और कुछ भी नहीं। प्रारम्भ में तो बस इतना भर कहना ही उचित होगा कि इस विषय का मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष में बड़ा महत्त्व है। वस्तुतः आधारशीला यही विषय है।
यद्यपि, इस विषय पर हिन्दी तथा अंग्रेजी में अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं और सभी पुस्तकें एक-से-एक उत्तम हैं। फिर यह जिज्ञासा मन में उठनी स्वाभाविक ही है कि एक नई पुस्तक को श्रृंखलाबद्ध करने की आवश्यकता क्यों महसूस की गई? इस प्रश्न के उत्तर में तथा पुस्तक लेखन के पीछे लेखकगणों की जो भावना निहित है; वह है-छात्रों को एक ऐसी पुस्तक उपलब्ध कराना जो ‘Handy and Comprehensive’ हो साथ ही, उनकी सभी आकांक्षाओं पर खरी उतरे। इसलिए पुस्तक को हर दृष्टि से सीमित रखा गया है, चाहे उसका स्वरूप विषय-वस्तु हो, आर्थिक हो, समय अथवा शक्ति हो। लेखकगणों का विश्वास है कि पुस्तक छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों एवं शिक्षाशास्त्रियों की विषयगत जिज्ञासाओं को किसी सीमा तक अवश्य सन्तुष्ट कर पाएगी। गागर में सागर भरने का प्रयास हर व्यक्ति का रहता है। लेखकगण भी स्वयं को इस भावना से वंचित नहीं रख पाए। इसी दृष्टि से पुस्तक की भाषा तथा उसके प्रवाह की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। साथ ही पाठ्य-वस्तु के सूक्ष्म तथ्यों को भी सफलता से समझाने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक को लिखने में अनेक हिन्दी तथा अंग्रेजी की पुस्तकों का सहारा लेना पड़ा। अतः लेखकगण उन सभी लेखकों तथा प्रकाशकों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं जिनकी रचनाओं से सहायता मिली है। लेखकगण उन सभी गुरुजनों, मित्रों, साथियों, सहयोगियों एवं शुभचिन्तकों के प्रति भी नतमस्तक हैं जिनसे यदा-कदा भेंट हमेशा एक प्रेरणा सम्भल बनी रही। यद्यपि, पुस्तक की प्रूफ रीडिंग सावधानीपूर्वक की गई है। फिर भी अनेक अशुद्धियों का रह जाना स्वाभाविक है। अतः लेखकगण उन सभी पाठकों के आभारी रहेंगे जो पुस्तक की त्रुटियों के बारे में अवगत कराएँगे तथा अपने बहुमूल्य सुझाव देकर लेखकणों को कृतार्थ करेंगे। इस पुस्तक के शीघ्र प्रकाशन के लिए लेखकगण (श्री विनय रखेजा जी) प्रकाशक एवं वितरक आर०लाल० बुक डिपो मेरठ को कृतज्ञता ज्ञापित किए बिना भूमिका को व
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