प्रथम संस्करण की भूमिका
भाषा अभिव्यक्ति का साधन और ज्ञान ग्रहण करने का माध्यम है। भाषा का ज्ञान इस दिशा में बालक के लिए वह सीढ़ी है जिसकी सहायता से वह अपने विकास की छोटी-बड़ी मंजिलों की ऊँचाइयों तक पहुँचता रहता है। बालक के व्यक्तित्व का समुचित विकास और उसके अध्ययन-मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी अभिव्यक्ति की भाषा पर समुचित अधिकार स्थापित कर सके। इस कार्य हेतु बालक के भाषा-शिक्षण पर प्रारंभ से ही पूरा-पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है। यह आवश्यकतापूर्ति स्वाभाविकं रूप से अध्यापकों के उचित प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी हुई है। प्रस्तुत पुस्तक इसी आवश्यकतापूर्ति का एक प्रयास है।
इस प्रयास की कुछ निम्न विशेषताएँ हैं-
• पुस्तक यद्यपि विशेषकर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय एवं महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के नियमित एवं पत्राचार बी.एड. पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर लिखी गई है, परन्तु यह अन्य भारतीय विश्वविद्यालय तथा संस्थानों के अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता को भी पूरा करने में सक्षम है।
पुस्तक की भाषा को यथासंभव सरल एवं छात्र-उपयोगी रखने का प्रयत्न किया गया है। इसी दृष्टि से पुस्तक में जहाँ-तहाँ अंग्रेजी समानार्थक शब्द और पद देने की चेष्टा की गई है तथा प्रकरणों के अंत में परीक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण विश्वविद्यालयी प्रश्नों को अध्ययन तथा अभ्यास हेतु रखा गया है।
• हिंदी भाषा-शिक्षण के प्रशिक्षण पाठ्यक्र की आवश्यकतापूर्ति हेतु पुस्तक में हिंदी-शिक्षण सम्बन्धी आवश्यक विषयवस्तु को इनके द्वितीय खंड में अलग से चार अध्यायों में विभाजित कर वर्णन करने का प्रयत्न किया गया है।
आशा है अपने प्रस्तुत रूप में यह प्रयास हिंदी भाषा के सेवारत और भावी अध्यापक दोनों को ही अपने शिक्षण-कार्य में सफलता प्राप्त कराने का मार्ग प्रशस्त कर सकेगा।
इस पुस्तक की रचना हेतु जिन विद्वानों की रचनाओं से लाभ उठाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है तथा शिक्षण-प्रशिक्षण से लगातार पिछले दो दशक से जुड़े रहने के कारण अपने साथियों तथा विद्यार्थियों से जो भी ज्ञान एवं अनुभव प्राप्त हुए हैं उनके प्रति आभार प्रकट करना मैं अपना कर्त्तव्य समझती हूँ तथा साथ ही उनसे यह अपेक्षा भी करती हूँ कि वे इसमें आवश्यक सुधार हेतु अपने अमूल्य सुझाव देने का कष्ट करेंगे।
पाठकों के लिए शुभकामनाओं सहित।
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