प्राक्कथन
18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक शिक्षा को शिक्षक-केन्द्रित माना जाता था तथा बालक की क्षमताओं की पूर्ण रूप से अवहेलना की जाती थी और यहाँ तक कहा जाता था कि ‘डण्डा हटा कि बालक बिगड़ा’ (Spare the rod spoil the child)। रूसो ऐसे प्रथम चिन्तक थे जिन्होंने शिक्षा को बाल-केन्द्रित करने पर विशेष बल दिया। रूसो के अनुसार ज्ञान बच्चों पर बाहर से लादने की चीज नहीं है बल्कि उन्हें प्रकृति के सम्पर्क में रहकर अपनी कर्मेन्द्रियों द्वारा करके तथा ज्ञानेद्रियों द्वारा स्वयं अनुभव करके सीखने की स्वतंत्रता दी जाये। इसके बाद 19वीं शताब्दी में मनोविज्ञान तथा शिक्षा मनोविज्ञान के अस्तित्व में आने के बाद शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का केन्द्र-बिन्दु वालक को ही माना जाने लगा है। शिक्षा को बाल-केन्द्रित वनाने में मनोविज्ञान के प्रत्ययों, नियमों, तथा सिद्धान्तों आदि का विशेष योगदान रहा है। पिछले कई दशकों से शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम का निर्धारण इस उद्देश्य से किया जा रहा है कि जिससे बालक का चहुमुखी विकास हो सके। बालक के सम्पूर्ण विकास में उसके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास को सम्मिलित किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान बालकों तथा किशोरों के सभी प्रकार के विकास के प्रत्येक पहलू की जानकारी प्रदान करता है जो छात्रों, अध्यापकों, अभिभावकों तथा शैक्षिक प्रबन्ध-तंत्रों के लिए बहुत उपयोगी है।
यूँ तो शिक्षा मनोविज्ञान की अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं लेकिन सरल हिन्दी भाषा में लिखी गयी ऐसी पुस्तकों का अभाव है जिनमें विभिन्न विश्वविद्यालयों के एम०एड० के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को एक ही पुस्तक में समाहित किया गया हो। इस पुस्तक की रचना इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु की गयी है। प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न पाश्चात्य अद्यतन मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के विवरण के साथ-साथ बालक के मनोवैज्ञानिक विकास के भारतीय सिद्धान्त तथा व्यक्तित्व के भारतीय सिद्धान्तों का भी विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त संवेगात्मक बुद्धि, आध्यात्मिक बुद्धि, शारीरिक बुद्धि जैसे नवीन प्रत्ययों को भी समावेशित किया गया है।
विषय-सामग्री को सरल, रोचक तथा बोधगम्य बनाने हेतु आवश्यकतानुसार, चित्रों, आरेखों, तालिकाओं, कहावतों तथा उदाहरणों आदि का यथास्थान समुचित रूप से समावेश किया गया है। इसके अतिरिक्त विषय-सामग्री को सरल भाषा में तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया गया है जिससे छात्र आसानी से ग्रहण कर सके।
आशा है कि प्रस्तुत प्रस्तुक मेरठ, रोहतक, कुरुक्षेत्र, जींद, हजारीबाग, गोरखपुर तथा राजस्थान आदि विश्वविद्यालयों के एम०ए०, एम०एड० तथा एम०फिल० के छात्रों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में प्रयुक्त होने
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