भूमिका
शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है, इस प्रक्रिया की सफलता उत्तम शैक्षिक प्रशासन एवं प्रवन्धन पर निर्भर करती है। शिक्षा के क्षेत्र में की गई सुनियोजित व्यवस्था ही शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबन्धन है। इसमें शैक्षिक प्रबन्धन एक विशेष प्रक्रिया है। मानवीय समाज एवं संस्था के उचित संचालन हेतु शैक्षिक प्रशासन एवं प्रवन्धन का होना अति आवश्यक है। प्रस्तुत पुस्तक “शैक्षिक प्रशासन एवं प्रवन्धन” (Educational Administration and Management) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (U.G.C.) द्वारा निर्मित नवीन मॉडल पाठ्यक्रम के आधार पर निर्मित विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों के आधार पर तैयार की गई है साथ ही साथ यह भी ध्यान रखा गया है कि सम्पूर्ण पाठ्यक्रम एक साथ सरलता एवं सुगमता से उपलब्ध हो सके, इसलिए प्रस्तुत पुस्तक की सम्पूर्ण विषय वस्तु को विषय सूची के अनुसार कुल पाँच इकाइयों और फिर इन इकड़ायों को आवश्यकतानुसार कुल इक्कतीस (31) अध्यायों में विभाजित किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक “शैक्षिक प्रशासन एवं प्रवन्धन” का उद्देश्य बी०एड०, एम०एड० एवं बी०ए० शिक्षाशास्त्र के शिक्षकों, शोधकर्ताओं तथा छात्रों के लाभार्थ शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबन्धन का एक सरल, संक्षिप्त तथा सारगर्भित विवरण प्रस्तुत करना है। छात्रों की आसानी के लिए प्रस्तुत पुस्तक को यथा सम्भव एवं स्पष्ट सरल तथा बोधगम्य बनाने के साथ, रेखाचित्र एवं आलेखों का भी प्रयोग किया गया है।
विश्वविद्यालय परीक्षा की नवीनतम मूल्यांकन प्रणाली के आधार पर सभी अध्यायों के अन्त में निबन्धात्मक, लघु एवं अति लघु प्रश्न रखे गये हैं एवं पुस्तक के अन्त में (परिशिष्ट) 300 बहुविकल्पीय प्रश्नों को रखा गया है। जिससे कि छात्र विश्वविद्यालय परीक्षा की तैयारी कर सफलता प्राप्त कर सकें।
यह पुस्तक परम पूज्य ‘गुरुजी’ श्रद्धेया डॉ० (श्रीमति) उषा सिंह जी (मू०पू० रीडर एवं विभागाध्यक्ष, भूगोल विभाग, हिन्दू
कालिज मुरादाबाद की प्रेरणा, विचार, प्रवचन एवं लेखन प्रशिक्षण का परिणाम है। पढ़ते रहो, विचार करते रहो, बढ़ते रहो, लिखते रहो जैसे आदर्श कथनों के माध्यम से हिम्मत एवं उत्साह बढ़ाने वाली, सरल स्वभाव, कर्मठ, ईमानदार शिक्षाविदूषी को शत्-शत् नमन चरण स्पर्श ।
इस पुस्तक के लेखन में ईश्वर की असीम अनुकंपा एवं कृपा के साथ-साथ अनेक विद्वानों, शिक्षाविदों, दार्शनिकों, समाजसेवियों, प्रबन्धकर्ताओं एवं प्रशासकों के विचारों, साहित्य-सामग्री आदि का सहारा लिया गया है। इन सभी ज्ञात-अज्ञात, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रेरणा स्रोतों एवं मार्गदर्शकों को सादर प्रणाम।
मैं अपने माता-पिता के आशीर्वाद, परिवार के अन्य सदस्यों तथा मित्रों एवं प्रकाशक ‘श्री विनय रखेजा जी’ के प्रति आभारी हूँ। जिन्होंने न केवल पुस्तक रचना के लिए प्रेरित किया वरन् समय-समय पर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष सहयोग देकर बहुमूल्य मार्ग दर्शन भी प्रदान किया है। अन्त में इस पुस्तक की लेजर टाइपिंग सैटर्स, श्री शरणवीर सिंह जी का आभारी हूँ।
यह लेखक का शैक्षिक प्रशासन एवं प्रवन्धन विषय के लिये प्रथम प्रयास है। लेखक द्वारा पुस्तक की रचना में पूर्ण सतर्कता का ध्यान रखा गया है, इसके बावजूद त्रुटियों एवं अशुद्धियों का रह जाना सम्भव है, जिनके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। अतः इस पुस्तक को अगले संस्करण में और अधिक सार्थक एवं उपयोगी बनाने हेतु विद्वानों, शिक्षाविदों, सहयोगियों, शिक्षक बन्धुओं और शिक्षार्थियों के रचनात्मक सुझाव आमंन्त्रित हैं।
बुद्धि विहार-।।, मुरादाबाद
– डॉ० मोहन लाल “आर्य”
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