भूमिका
तुलनात्मक शिक्षा एवं तुलनात्मक अध्ययन दो पृथक प्रत्यय हैं। उन्हें एक ही अर्थ में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है। तुलनात्मक शिक्षा अध्ययन का एक स्वतन्त्र क्षेत्र है, जबकि तुलनात्मक अध्ययन एक आयाम तथा विधि है। तुलनात्मक विधि अधिक प्राचीन है। इसका उपयोग सामाजिक विषयों एवं शोध अध्ययनों में किया जाता है। मानवीय व्यवहार सापेक्ष होता है। इसलिये तुलनात्मक विधि व्यावहारिक विज्ञानों में अधिक उपयोगी है। मानव की प्रकृति में समानता होती है। परन्तु मानव प्रवृत्तियों में भिन्नता होती है, इसलिये तुलना की आवश्यकता होती है। तुलनात्मक विधि का विकास वैज्ञानिक आव्यूह के रूप में किया गया है।
तुलनात्मक शिक्षा में ‘तुलना’ का उपयोग दो अर्थों में किया जाता है- प्रथम अर्थ में तुलना शब्द अध्ययन के लक्ष्य/उद्देश्य की ओर संकेत करता है तथा द्वितीय अर्थ में तुलना शब्द का उपयोग विधि/आव्यूह के लिये किया जाता है। प्रथम अर्थ सैद्धान्तिक और द्वितीय अर्थ व्यावहारिक अधिक है। तुलनात्मक शिक्षा के अन्तर्गत दो या दो से अधिक देशों की शिक्षा प्रणालियों की तुलना की जाती है। इसके लिये सहायक विधियों का भी उपयोग किया जाता है, जैसे- दार्शनिक तुलनात्मक विधि, ऐतिहासिक तुलनात्मक विधि तथा सर्वेक्षण तुलनात्मक विधि आदि। तुलनात्मक अध्ययन में कार्य-कारण विधि का भी उपयोग किया जाने लगा है। इस प्रकार अनेक विधियों/आव्यूहों का उपयोग तुलनात्मक अध्ययन में किया जाने लगा है।
तुलनात्मक शिक्षा का उद्देश्य विश्व के देशों की शिक्षा प्रणालियों की समानताओं एवं विषमताओं का अध्ययन करना है। शिक्षा प्रणालियों में समानतायें शिक्षा व्यवस्था की दृष्टि से पाई जाती हैं। विश्व की शिक्षा व्यवस्था चार स्तरों में की जाती है, यह स्तर इस प्रकार
1. पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (Pre-primary Education),
2. प्राथमिक शिक्षा (Primary Education),
3. माध्यमिक शिक्षा (Secondary Education) तथा
4. उच्च शिक्षा (Higher Education)।
परन्तु विश्व के देशों की शिक्षा व्यवस्था स्तरों के प्रारूप में अधिक विषमताएँ पाई जाती हैं। प्रत्येक स्तर के प्रारूप के घटकों में एकरूपता है, परन्तु घटकों की संरचनाओं में सार्थक विषमताएँ पाई जाती हैं।
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