भूमिका (PREFACE)
“शोध में निरन्तर अभ्यास करना सात्विक तप है”
“ज्ञान के समान संसार में कोई वस्तु पवित्र नहीं है”
शिक्षाशास्त्र का एक अनुशासन के रूप विकास हुआ है, परन्तु इसने शोध-विधि विज्ञान (Methodology) को अधिक विकसित कर लिया है। शोध के अन्तर्गत वैज्ञानिक विधियों एवं विधियों को समस्याओं के समाधान हेतु प्रयुक्त किया जाता है। शोध की वैज्ञानिक विधियों शिक्षकों तथा शिक्षाशास्त्रियों के लिए अधिक उपयोगी एवं महत्वपूर्ण हैं। शिक्षा अनुशासन का मूल अध्ययन क्षेत्र कक्षा-शिक्षण (Classroom) है। इसी तथ्य को कोठारी
आयोग ने भी महत्व दिया है- “भारत के भाग्य का निर्माण विद्यालय की कक्षाओं में हो रहा है।” आज वेद्यालयों की कक्षा के अन्तर्गत अधिक विधिता है तथा नये-नये पाठ्यक्रमों को भी सम्मिलित किया ॥ रहा है। समाज में परिवर्तन भी बड़ी तीव्रता से हो रहा है। प्रत्येक माता-पिता तथा अभिभावक अपने बालकों को शिक्षा देना चाहते हैं क्योंकि शिक्षा ही एक ऐसी विद्या है जो मानव को मानव बनाती है। समाज के परिवर्तन के साथ ही शिक्षा में भी परिवर्तन उसी गति से अपेक्षित है। तभी शिक्षा समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकेगी। शिक्षा सामाजिक परिवर्तनों पर नियन्त्रण भी करती है। सलिए शिक्षा का अध्ययन क्षेत्र विद्यालय एवं विद्यालय की कक्षाएँ हैं। अब तक के शोध अध्ययनों * कक्षा की समस्याओं पर शोध अध्ययन बहुत कम हुए हैं तथा जो हुए हैं इनके अतिरिक्त अन्य शोध अध्ययनों की व्यवहारिकता शिक्षा में बहुत कम है। यह समस्या विश्वव्यापी है। इसलिए शिक्षा में शिक्षणशास्त्र (Pedagogy) को महत्व दिया जाने लगा है। क्योंकि शिक्षणशास्त्र की मूल पाठ्यवस्तु में विद्यालय की कक्षा को महत्व दइस संस्करण में विश्वविद्यालयों के एम०ए० (शिक्षाशास्त्र), एम०एड० तथा एम० फिल० के यतन पाठ्यक्रमों को सम्मिलित किया गया है और सम्पूर्ण शिक्षा अनुसन्धान की पाठ्यवस्तु को ड़तीस अध्यायों में प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक के प्रथम भाग में शिक्षा अनुसन्धान के मूल तत्व था शोध प्रक्रिया को विस्तृत रूप में दिया गया है। अन्तिम भाग में शिक्षा अनुसन्धान की प्रक्रिया में युक्त की जाने वाली सांख्यिकी को दिया गया है। इस संस्करण में शिक्षा अनुसन्धान के मूल व-ज्ञान, परिपृच्छा, वैधानिक परिपृच्छा, वैधानिक विधि, प्रतिरूप, प्रतिमान, सिद्धान्त, आयाम, घ-विज्ञान तथा आव्यूह की व्याख्या की गई है। समाजशास्त्रीय शोध विधि तथा मनोवैज्ञानिक शोध धि का भी उल्लेख किया गया है। इसमें शोध निष्कर्षों की आन्तरिक व बाह्य वैधता को एक अध्याय समझाया गया है। इस पुस्तक में शिक्षणशास्त्र के शोध आयामों को भी एक पृथक् अध्याय में दिया या है।
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