प्रस्तावना (Introduction)
यह सर्व विदित है कि बालकों के विकास में 36 वर्ष तक की आयु महत्वपूर्ण है और इसमें नागरिक के गुणों का बीजारोपण किया जाता है। इस अवधि में बाकी के और दोषों को निश्चित वातावरण द्वारा रोका जा सकता है। आने वाली क्षमता
इसके साथ ही साथ हम यह भी अनुभव करते हैं कि पूर्व प्राथमिक (नर्सरी) शिक्षा काल के दोष बालक के भावी जीवन में असफलता का कारण बनते हैं। बालक में कुछ चारित्रिक गुण होते हैं, उन गुणों को मालूम करना और उनका विकास करना आवश्यक है, जिससे वह अपने वातावरण का उचित प्रयोग कर अपने आली जीवन को सफल बना सके। बालक के सर्वांगीण विकास के लिए उसकी रुचि के अनुसार उसका पालन-पोषण करना एवं देखभाल आवश्यक है। अतः नर्सरी (पूर्व प्राथमिक शिक्षा समाज की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। पूर्व बाल्यावस्था की शिक्षा (E.C.E) को बाल विकास के लिए आवश्यक माना जाने लगा है। ई०सी०ई० की उपयोगिता इस सन्दर्भ में भी मानी जाती है कि इससे बालक प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए शारीरिक तथा मानसिक रूप से तैयार हो जाते हैं। वर्तमान समय में नर्सरी विद्यालयों का विकास अत्यन्त तेजी से हुआ है। पूर्व बाल्यावस्था की शिक्षा का विकास जितना तेजी से हो रहा है, उतनी तेजी से नर्सरी विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों/शिक्षिकाओं के प्रशिक्षण की दिशा में कम प्रगति हुई है।
राष्ट्रीय शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसन्धान परिषद् (N.C.E.R.T.) ने पूर्व बाल्यावस्था की शिक्षा की स्थिति को गम्भीरतापूर्वक समझा तथा पूर्व बाल्यावस्था की शिक्षा पर अनुसन्धान करने के लिए, एक पृथक विभाग स्थापना की। इस विभाग ने पूर्व बाल्यावस्था की शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के लिए मार्गद
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