भूमिका
इक्कीसवीं शताब्दी में वैश्विक पटल पर तीव्र गति से परिवर्तन हो रहे हैं। विश्व समाज का स्वरूप बदल रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और नैतिक स्थितियों में भारी बदलाव आया है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने भारतीयों के चिन्तन और कार्य शैली को बदला है और इस बदलते माहौल में उनमें वैयक्तिक, सामाजिक व राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में नयी-नयी अपेक्षाएँ, आशाएँ और आकांक्षाएँ पैदा हुयी हैं। इन परिवर्तनों और बदलावों का सीधा प्रभाव शिक्षा पर पड़ना स्वाभाविक है, इसलिए बदलती हुई भारत की सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप शिक्षा की योजना का निर्माण करना और सही अर्थों में उसको क्रियान्वित करना अपरिहार्य हो गया है। देश की नयी शिक्षा नीति 2020 में छात्रों को ग्लोबल सिटीजन बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है और इसके लिए ‘टैलेन्ट और टैक्नोलॉजी’ के प्रति मानसिकता को बनाने की बात कही गयी है। अतएव इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु छात्रों को समाज की वर्तमान स्थितियों, विषयों, समस्याओं और चुनौतियों- सामाजिक संरचना, सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक गतिशीलता, सामाजिक स्तरीकरण, सामाजिक नियन्त्रण, सामाजिक सम्बन्ध, सामाजिक मूल्य, सामाजिक भूमिकाएँ, लोकतान्त्रिक व्यवस्था, संवैधानिक स्थिति, सांस्कृतिक परिवेश, नैतिक एवं चारित्रिक आचरण, भूमण्डलीकरण, उदारीकरण, पश्चिमीकरण, नगरीकरण, आधुनिकीकरण, निजीकरण, राष्ट्रवाद, अन्तर्राष्ट्रवाद आदि-आदि से अवगत कराकर उनके वैचारिक चिन्तन को सुदृढ़ करने तथा कार्य संस्कृति की शिथिलता को समाप्त करके उनको योग्य, कर्मठ, परिश्रमी, चरित्रवान, उत्तरदायी, समाज के प्रति संवेदनशील और समाज व राष्ट्र के प्रति समर्पित नागरिक बनाने की महती आवश्यकता है। प्रस्तुत पुस्तक ‘शिक्षा के समाजशास्त्रीय मूल आधार’ में इन्हीं सब विषयों की विवेचना की गयी है। इस कृति का मुख्य लक्ष्य छात्रों को शिक्षा के समाजशास्त्रीय मूल आधार के महत्त्वपूर्ण और आवश्यक विषयों के सम्बन्ध में ज्ञान कराना है। भारतीय विश्वविद्यालयों के विभिन्न संकायों में स्नातकोत्तर कक्षाओं एम०एड० और एम०ए० (शिक्षाशास्त्र) आदि में ‘शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधार’, ‘शिक्षा का समाजशास्त्र’, ‘शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य’, ‘आधुनिक शिक्षा में समाजशास्त्र की भूमिका’ आदि नाम से पाठ्यक्रम संचालित किये गये हैं। इस पुस्तक के लेखन में मेरा यही प्रयास रहा है कि इन सभी पाठ्यक्रमों की विषयवस्तु को इसमें सम्मिलित किया जाय। यू०जी०सी० नेट के परीक्षार्थियों को उनकी परीक्षा में और शोधार्थियों को उनके शोध
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