भूमिका
शिक्षा में सुधार करने की श्रृंखला में अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने हेतु गम्भीर चिन्तन-मनन के बाद भारत सरकार द्वारा बी०एड० की तरह एम०एड० के पाठ्यक्रम को भी दो वर्ष का कर दिया गया है। द्विवर्षीय पाठ्यक्रम होने से देश के सभी विश्वविद्यालयों में एम०एड० के पाठ्यक्रम में भारी परिवर्तन किये गये हैं। शिक्षा दर्शन की अप्रतिम महत्ता के कारण सभी विश्वविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रम में ‘शिक्षा के दार्शनिक आधार’ को एक अनिवार्य कोर्स के रूप में सम्मिलित किया है। विभिन्न विश्वविद्यालयों के इस कोर्स के पाठ्यक्रम में बहुत भिन्नताएँ हैं। अतएव एक ऐसी पाठ्यपुस्तक की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा था, जिसमें सभी विश्वविद्यालयों के एम०एड० के इस कोर्स के पाठ्यक्रम की विषय-सामग्री समाहित हो। प्रस्तुत पुस्तक ‘शिक्षा के दार्शनिक मूल आधार’ की रचना इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए की गयी है। यद्यपि शिक्षा दर्शन का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है तथापि इससे सम्बन्धित सभी विषयों की विषय-सामग्री को इसमें सम्मिलित करने का पूर्ण प्रयास किया गया है, जिससे विद्यार्थियों को इधर-उधर भटकना न पड़े। पुस्तक के लेखन में इस बात का ध्यान रखा गया है कि विषय-सामग्री सार्थक हो, विषय से सम्बन्धित हो, प्रासंगिक हो, तार्किक क्रम में हो और रोचक हो। विषय-वस्तु से सम्बन्धित बिन्दुओं को अत्यन्त सरल, सुबोध और सजीव ढंग से स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। आशा है कि यह पुस्तक एम०एड०, एम०ए० (शिक्षाशास्त्र), एम० फिल० और नेट के छात्र-छात्राओं तथा शिक्षा दर्शन के क्षेत्र में रुचि रखने वाले अध्येयताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
इस पुस्तक की पाण्डुलिपि को तैयार करने में अनेक विद्वानों तथा लेखकों के विचारों का उपयोग किया गया है, अनेक ग्रन्थों का सन्दर्भ लिया गया है, में उन सभी विद्वानों, लेखकों और प्रकाशकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। में अपने उन सभी सहयोगियों और शोथ छात्रों का भी आभारी हूँ, जिन्होंने इस पुस्तक को प्रस्तुत करने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहयोग दिया है।
चार दशक तक एम०एड० कक्षाओं को शिक्षा दर्शन का अध्यापन करने के अन्तराल में अनेक शिक्षाविदों से हुए सम्पर्क के अनन्तर शिक्षा दर्शन की गूढ़ समस्याओं को समझने और उनके विचारों से लाभान्वित होने का अवसर मिला, उसके लिए में उन सभी का आभारी हैं। इस सन्दर्भ में में अपने परमआत्मीय और घनिष्ठ सहयोगी शिक्षा मर्मज्ञ प्रो०
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