प्रस्तावना
बालकों के विकास तथा राष्ट्र के उत्थान में शिक्षा का योगदान सदैव से ही अद्वितीय रहा है। समाज ने हमेशा ही जन-कल्याण के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के उद्देश्यों तथा शिक्षण अधिगम नीतियों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन/सुधार किए हैं। वर्तमान समय में समावेशी शिक्षा एक ऐसा ही प्रयास है- जिस के उद्देश्य बहुत प्रभावी है, और प्रक्रम अत्यन्त कठिन, लेकिन असम्भव नहीं।
प्रजातान्त्रिक भारत के संवैधानिक अधिनियमों में शिक्षा का अधिकार (RTE, Act-2009) अधिनियम एक ‘मील का पत्थर साबित हुआ है. जिसके परिणामस्वरूप निशुल्क, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा अर्थात् शिक्षा का अधिकार सब के लिए, सब के साथ रामी बालकों का एक मौलिक अधिकार बन गया है। दूसरी ओर, संसार के विकसित देशों की तरह भारत सरकार में भी समावेशन की मौलिक धारणाओं को स्वीकार करते हुए ‘जटिल’ तथा ‘विशिष्ट’ कहे जाने वाले करोड़ों बालकों को सामान्य विद्यालयों में दूसरे सामान्य बालकों के साथ शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा के लिए आवश्यक प्रावधानों को लागू करना प्रारम्भ कर दिया है। इस सन्दर्भ में राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) ने देश के सभी विश्वविद्यालयों तथा शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं में ‘समावेशी शिक्षा के अध्ययन कोर्स को अनिवार्य रूप से लागू करने के निर्देश दिए हैं।
प्रस्तुत पुस्तक ‘समावेशी विद्यालय की स्थापना’ (Creating an Inclusive School), कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र के दो वर्षीय बी.एड कोर्स की आवश्यकता को ध्यान में रखकर तैयार की गई है
पुस्तक में वर्णित विषय-वस्तु निर्धारित पाठ्यक्रम की सम्पूर्ण आवश्यकताओं के अनुरूप है तथा सिलेबस में सम्मिलित समी अंशों का अत्यन स्पष्टता तथा अपेक्षित विस्तार से वर्णन किया गया है।
समावेशन की मौलिक धारणाओं तथा समावेशी शिक्षा से जुड़े सभी संप्रत्ययों, तथा तत्वों की अत्यन्त सरल, सुस्पष्ट तथा बोधगम्य भाषा में व्याख्या की गई है।
पाठ्य-वस्तु से सम्बंधित महत्वपूर्ण बिन्दुओं तथा प्रकरणों पर विशेष बल दिया गया है। मुख्य शीर्षकों तथा सारणियों की सहायता से विषय-वस्तु को अधिक स्पष्ट तथा बोधगम्य बनाने का प्रयास किया गया है।
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