प्राक्कथन
यह भारतवर्ष ही था, जहाँ गुरु की गोविन्द से भी श्रेष्ठ माना जाता था तथा गुरु अपने आश्रम में अपने शिष्यों को अपनी सन्तान के समान रखते हुए उन पर सर्वस्व न्यौछावर कर देते थे। तभी तो भारत को विश्व का आध्यात्मिक गुरु माना जाता था। आज सम्पूर्ण विश्व 21वीं शताब्दी में प्रवेश कर चुका है। ज्ञान के विस्फोट की इस शताब्दी में विश्व के साथ-साथ भारत में भी बहुत परिवर्तन हुआ है। आज गुरु के लिए अध्यापक, शिक्षक, टीचर, मास्टर जी सदृश शब्द प्रयुक्त होने लगे हैं तथा उसे मार्गदर्शक या सखा के रूप में देखा जाने लगा है। इस बदलते वैज्ञानिक युग में शिक्षक के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह अपने विषय क्षेत्र में हो रहे दिन-प्रतिदिन की प्रगति से न केवल परिचित होता रहे, अपितु सांख्यिकी का भी समुचित ज्ञान प्राप्त करे, क्योंकि आज अध्ययन का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। यही कारण है कि प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा के सभी शिक्षक-प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में यह किसी न किसी रूप में अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया गया है, किन्तु यह विडम्बना है कि शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के माध्यम से जिन सांख्यिकीय विधियों का ज्ञान शिक्षक प्राप्त करते हैं। अपने विद्यालयों की वास्तविक कक्षाओं या विद्यार्थियों अथवा जीवन में इसका प्रयोग नहीं करते हैं। इसका एक बड़ा कारण सांख्यिकी के हिन्दी माध्यम के ग्रन्थ का अभाव है। लेखक ने स्वयं अपने प्रशिक्षण काल-बी० एड, एम० ए०, एम० फिल (शिक्षा) में इसका अनुभव किया और उसी समय से इस प्रकार की पुस्तक लेखन के लिए प्रेरित हुआ। प्रस्तुत ग्रन्थ इसी दिशा में एक लघु प्रयास मात्र है। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत प्रयास शिक्षक-प्रशिक्षकों व अध्यापकों के अतिरिक्त उन विद्यालयीय छात्रों के लिए भी उपादेय होगा, जो किसी भी रूप में ‘सांख्यिकी के सरल रूप’ का रसास्वादन करना चाहते हैं।
पुस्तक को सरस व ग्राह्य बनाने के लिए प्रत्येक अध्याय के अन्त में अभ्यासार्थ प्रश्न दिए गए हैं। कुछ तकनीकी शब्दों के अंग्रेजी रूपान्तरण भी दिए गए हैं तथा तथ्यों को सरल रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ पाठकों का यदि थोड़ा भी ज्ञानवर्धन कर सका, तो मैं अपना प्रयास सार्थक समझेंगा। सुविज्ञ पाठकों के सार्थक सुझावों का सदैव स्वागत रहेगा।
इस ग्रन्थ के प्रणयन में अनेक विद्वान लेखकों की रचनाओं का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में सहयोग लिया गया है। मैं उन सभी का हृदय से आभारी हूँ। पुस्तक लेखन के प्रेरणा स्त्रोत अग्रज डॉ० दुर्गाप्रसाद मिश्र – रीडर, संस्कृत विभाग, मेरठ कालिज, मेरठ के प्रति श्रद्धावनत हूँ तथा कार्य के प्रति सदैव सचेष्ट रहने के लिए प्रेरित करने वाली एवं पारिवारिक दायित्वों से मुक्त रखने वाली सहधर्मिणी श्रीमती बन्दना मिश्रा स्नेह की पात्र हैं। प्यारी पुत्री शुभी एवं भतीजा शिवम् बालसुलभ क्रीड़ाओं से मन को आनन्दित करने के कारण स्नेह के पात्र हैं।
दूसरों से कार्य को शीघ्रतापूर्वक सुसम्पन्न कराने में अति निपुण प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशक श्री विनय रखेजा जी स्वयं शीघ्रता से इस ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए धन्यवाद के पात्र हैं। अन्त में परमप्रभु, देवाधिदेव, काशीनरेश बाबा विश्वनाथ की जयजयकार जिन्होंने ग्रन्थ-प्रणयन की मुझे शक्ति प्रदान की।
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