भूमिका
यह पुस्तक ‘लिंग, स्कूल एवं समाज’ लिंग भेदद्भाव, लिंग पहचान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तथा संकल्प, समाज की लिंग भेदभाव में भूमिका तथा शिक्षा के लिंग भेद्भाव को समाप्त करने के योगदान से संबंधित है। यह देखा गया है कि कई सामाजिक तत्व, जैसे लड़कों की इच्छा, दहेज की समस्या, वृद्धावस्था का भय (कौन संभालेगा?) एकल परिवार, बेरोज़गारी की समस्या आदि भी इस भेदभाव के लिए उत्तरदायी है। इस पुस्तक में विस्तृत रूप से बताए गए तथा पाठकों का ध्यान वास्तविक सत्यता की ओर केंद्रित करते हैं, जो लिंग भेदभाव के नकारात्मक पक्ष को उजागर करती है। यह भी सत्य है कि लिंग भेदभाव हमारी जड़ों तक फैला हुआ है, जिसे जड़ से उखाड़ना इतना संभव नहीं है। परन्तु इस पुस्तक के माध्यम से एक छोटा सा प्रयास किया गया है, जिसमें स्त्रियों के कल्याण के लिए किए गए कार्यों संबंधी, स्त्रियों के स्वास्थय कल्याण के कार्यक्रम संबंधी, समाज में लिंग समानता प्रति जागरूकता तथा सरकार की नीतियों एवं योजनाओं के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। सामान्यतः यह देखा गया है कि अधिकांश साहित्य पुरूषों के महत्व को तथा उनके स्त्रियों पर अधिकार को दर्शाता है तथा स्त्रियों की भूमिका को एक दब्बू व्यक्तित्व की भांति पेश किया जाता है। इस पुस्तक में इन सभी मुद्दों की संवेदनशीलता से चर्चा की गई है क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसका उद्देश्य एक विकसित देश बनना है। इस पुस्तक का उद्देश्य भावी पीढ़ी की इन समस्याओं से अवगत करवाना है।
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