School Organisation And Management (Hindi)
भूमिका
यह पुस्तक ‘विद्यालय संगठन एवं प्रबन्धन’ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (U.G.C.) के द्वारा निर्मित मॉडल पाठ्यक्रम के आधार पर विकसित पाठ्यक्रमों के अनुसार तैयार की गई है. और यह ध्यान रखा गया है कि सम्पूर्ण पाठ्यक्रम एक साथ सुगमता से उपलब्ध हो सके, इसलिए सम्पूर्ण पुस्तक की विषयवस्तु को विषय सूची के अनुसार इकाइयों में बाँटा गया है और फिर इन इकाइयों के अनुरूप आवश्यकतानुसार अध्यायों में विभाजित किया गया है।
किसी भी अधिसंरचना के तीन पक्ष होते हैं- प्रथम पक्ष है- संगठन, दूसरा पक्ष है प्रबन्धन और तीसरा पक्ष है प्रशासन। संगठन, प्रबन्धन और प्रशासन एक-दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित हैं, अन्तर्निभर हैं और सहयोगी हैं। शिक्षा संगठन की अपनी अधिसरंचना (ढाँचा, Structure) है, अपने उद्देश्य हैं, प्रकृति है, क्षेत्र है, विशेषताएँ हैं और सीमाएँ हैं। ठीक इसी प्रकार प्रबन्धन और प्रशासन का अपना व्यवस्थित ढाँचा (Structure) है, उद्देश्य हैं, प्रकृति है, क्षेत्र है, विशेषताएँ हैं और सीमाएँ है। यही • नहीं इन सबके अपने-अपने सिद्धान्त, नियम, शर्ते और मानक (Norms) हैं। इन मानकों के आधार पर प्रत्येक भाग की अपनी अवधारणा निश्चित होती है और इसी अवधारणा के आधार पर उसकी अधिसंरचना (Structure) खड़ी होती है, जो शिक्षा को गुणात्मक रूप प्रदान करने में सहायता करती है।
शिक्षा का औपचारिक साधन विद्यालय है। विद्यालय से संस्कार, संस्कार से मनुष्य और मनुष्य से सामाजिक विकास होता है। प्रत्येक राष्ट्र अथवा समाज की अपनी ऐतिहासिक, भौगोलिक, सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्थिति, परिस्थिति एवं समस्याएँ होती हैं, परम्पराएँ होती हैं, आदर्श एवं संस्कृति होती है और इन्हीं के अनुरूप शिक्षा व्यवस्
इस पुस्तक के लेखन में ईश्वर की असीम कृपा के साथ-साथ अनेक विद्वानों, शिक्षाविदों, शिक्षकों, दार्शनिकों एवं समाज सेवियों के विचार एवं साहित्य सामग्री का सहारा लिया गया है। इन सब ज्ञात-अज्ञात प्रेरणा स्त्रोतों को सादर प्रणाम, हार्दिक आभार।
अन्त में माता-पिता के आशीर्वाद, पत्नी के सहयोग और बच्चों के कुतुहल ने इसे पूर्ण करने में सहयोग प्रदान किया है। आप सभी को धन्यवाद, हार्दिक आभार। प्रयास यही रहा है कि पुस्तक में कोई त्रुटि न रहे, फिर भी पूर्णता का दावा नहीं किया जा सकता क्योकि पूर्ण तो ईश्वर ही है।
पुस्तक की सार्थकता और उपादेयता तो विद्वान, शिक्षाविदों, सहयोगियों, शिक्षक बन्धुओं और शिक्षार्थियों की ग्राह्यता और रचनात्मक सुझावों पर निर्भर करती है। पाठकों के सुझाव आमन्त्रित हैं।
600/7, जाग्रति विहार, मेरठ
– डॉ० जी० एस० तोमर
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