भूमिका
जब से पृथ्वी का जन्म हुआ है या जिस रूप में भी हमने पृथ्वी को देखा है. सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सभी ग्रह अपनी अनुशासन पद्धति पर विचरण करते हैं और परस्पर सन्तुलन बनाये हुए हैं। इस अनुशासन के महत्त्व के सन्देश और आवश्यकता को देखते हुए मनुष्य भी प्रकृति के अनुशासन से प्रेरित होकर स्वयं ही अनुशासनबद्ध हो जाता है। अनुशासनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये मनुष्य को ज्ञान की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता पूर्ति के लिये मनुष्य विविध प्रकार के प्रयत्न करता है। इन प्रयत्नों को श्रृंखलाबद्धता में एक क्रमिक पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है। यह पाठ्यक्रम हो बताता है कि मनुष्य को मैदान रूपी पाठ्यक्रम में कितना दौड़ना है, कैसे दौड़ना है तथा कहाँ तक दौड़ना है। वस्तुतः औपचारिक शिक्षा को प्राप्ति के लिये जब छात्र विद्यालय जाता है तो उसे ज्ञान प्राप्ति हेतु किसी पाठ्यक्रम को आवश्यकता होती है। पाठ्यक्रम एक व्यवस्थित विषय अध्ययन संहिता है जिसमें विषय के सभी स्तरीय बिन्दु संकलित कर एक विशेष नियोजन स्थापित किया जाता है।
ज्ञान और पाठ्यक्रम (Knowledge and Curriculum) की जो अवधारणा आदिकालीन रूप से शिक्षा व्यवस्था में स्थापित है, इस पर शिक्षाशास्त्रियों और पाठ्यक्रम निर्माताओं का ध्यान गया, तद्नुसार शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् (NCTE) ने इस विषय को नवीन प्रश्न-पत्र के रूप में जोड़ दिया। अब यह पूर्व विदित विषय नवीन नाम से भारत के सभी विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम एवं ज्ञान का नाम देकर बी.एड. में अध्ययन- अध्यापन हेतु निर्धारित किया गया है। बी.एड. पाठ्यक्रम के अनुसार ऐसी क्रमबद्ध पाठ्य सामग्री अभ
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