दो शब्द
प्रस्तुत पुस्तक, शिक्षा में आईसीटी को विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, के सीबीएससी बी०ए० (रेगुलर) विद एजुकेशन के तृतीय वर्ष के लिए निर्धारित शिनितम पाठ्यक्रमानुसार को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
पुस्तक में प्रत्ययों (Concepts) को समझाने का बारीकी से प्रयास किया गया है तथा यथास्थान उपयुक्त उदाहरणों के द्वारा भरपूर प्रयास किया गया है ताकि विद्यार्थी प्रत्येक तथ्य को भली-भाँति समझ सकें। पुस्तक के प्रत्येक अध्याय के प्रत्येक विषय को सरल, धाराप्रवाह और समझने योग्य भाषा में प्रस्तुत किया गया है ताकि छात्रों को सामग्री को समझने में कोई कठिनाई न हो। शोध कार्यों का यथास्थान समावेश पुस्तक की प्रमुख विशेषता है। प्रत्येक विचारधारा से सम्बन्धित विद्वान का नाम उसी स्थान पर दिया गया है जहाँ उस धारा की चर्चा हुई है।
वर्तमान में आईसीटी (ICT) मानव जीवन का एक हिस्सा बन चुका है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आविष्कार और खोजों के कारण संचार की गति में सुधार हुआ है। आम आदमी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति उपलब्ध विभिन्न आईसीटी टूल्स का उपयोग करके कर रहा है। आईसीटी नये युग का एक अभिन्न अंग बन चुका है। छात्रों, शिक्षकों और वैज्ञानिकों के लिए WWW ज्ञान का एक विशाल भण्डार है। मुक्त विश्वविद्यालयों और मुक्त शैक्षिक संसाधनों के माध्यम से आईसीटी किसी भी स्थान पर किसी भी समय अधिगम को सक्षम बनाती है। विश्वव्यापी शोध से पता चला है कि आईसीटी उन्नत छात्र अधिगम और बेहतर शिक्षण विधियों में अग्रणी है।
शिक्षक के लिए, यह एक शुरुआत है-
• प्रौद्योगिकी की शैक्षणिक सम्भावनाओं की खोज की,
• हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और आईसीटी इन्टरएक्शन के सही विकल्प बनाने के लिए सीखने की, और
• आईसीटी के महत्वपूर्ण प्रयोगकर्ता बनने की ओर आगे बढ़ने की।
छात्र के लिए, यह एक शुरुआत है-
• रचनात्मकता और समस्या समाधान की,
• सूचना और प्रौद्योगिकियों के संसार से परिचित होने की, और
• कैरियर लक्ष्यों को आकार देने के अवसर की।
पुस्तक में सुधार के लिए सुझावों का कृतज्ञता के साथ स्वागत है। हम उन सभी सहकर्मियों और मित्रों के ऋणी हैं, जिन्होंने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से इस पुस्तक को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान किया। हम आर० लाल बुक डिपो के स्वामी श्री विनय रखेजा जी के प्रति भी अपना आभार प्रकट करते हैं, जिनके विश्वास, प्रेम और सहयोग के बिना यह कार्य सम्भव न था।
धन्यवाद !
-लेखकगण
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