प्रस्तावना
समाज के आदिकाल से लेकर अब तक के विकासक्रम पर यदि दृष्टिपात करें तो यह ज्ञात होगा कि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था एवं समाज की संरचना अधिक जटिल हो चुकी है। पारिवारिक, सामाजिक, व्यावसायिक, आर्थिक, शैक्षिक आदि क्षेत्रों में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में समस्याग्रस्त दिखाई देता है। घर में, समाज में, विद्यालय में अथवा अपनी दिनचर्या से संबंधित कार्यों में उत्पन्न समस्याओं के समाधान के लिए उसे किसी न किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता होती है। निर्देशन का उपयोग इसी उद्देश्य की पूर्ति में सहायक है। बिना निर्देशन के मानव दिशा भ्रमित हो जाएगा तथा अपने ही अंदर विद्यमान गुणों का समुचित प्रयोग नहीं कर पाएगा। अपने अंदर निहित योग्यताओं के समुचित विकास के लिए विभिन्न क्षेत्रों जैसे शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक, शैक्षिक, व्यवसायिक एवं आर्थिक विकास के लिए निर्देशन आवश्यक है।
मेरा पुस्तक लिखने का एकमात्र उद्देश्य छात्रों को विषय की नवीनतम एवं गहन जानकारी प्रदान करना है। यह पुस्तक पाठ्यक्रम के उद्देश्यों व छात्रों की शैक्षणिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर लिखी गई है। इस पुस्तक में पाठ्यक्रम के विभिन्न उपविषयों को सरल एवं स्पष्ट शब्दों द्वारा समझाया गया है। मैं आशा करती हूँ कि बी.एड., एम.एड., एम.फिल., एम.ए. (शिक्षा) के विद्यार्थी इस पुस्तक का भरपूर लाभ उठा पाएंगे।
सबसे पहले मैं अपनी कुलदेवी “माँ बाला सुन्दरी जी” का धन्यवाद करती हूँ, जिन्होंने मुझे इस पुस्तक को लिखने का मार्गदर्शन प्रदान किया। मैं उन सभी लेखकों, विद्वानों एवं विशेषज्ञों के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ, जिनकी पुस्तकों की पाठ्य-वस्तु एवं विचारों को मैने अपनी पुस्तक में शामिल किया है।
अंत में, पाठकों से मेरा अनुरोध है कि पुस्तक में जो अभाव एवं त्रुटियाँ दृष्टिगोचर हों, उनसे मुझे अवगत कराए एवं रचनात्मक सुझाव दें, ताकि पुस्तक के अगले संस्करण को और अधिक उपयोगी बनाया जा सके।
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