प्राक्कथन
“मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है। पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।”
किसी भी देश का विकास मुख्यतः वहां के मानव संसाधन पर निर्भर करता है। किसी भी देश का विकास 64% मानव संसाधन, 20% प्राकृतिक संसाधन तथा 16% अन्य बातों पर निर्भर करता है। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, “किसी समाज एवं राष्ट्र के विकास के लिए उसके नागरिकों को शिक्षित होना आवश्यक है।” अगस्त 2004 के स्वतन्त्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रपति डॉ० ए०पी० जे० अब्दुल कलाम ने कहा था कि, “किसी भी राष्ट्र के विकास और समृद्धि के लिए सबसे जरूरी तत्त्व शिक्षा है।” शिक्षा को परिभाषित करते हुए जेम्स ड्रेवर महोदय ने कहा है कि, “शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसमें और जिसके द्वारा नवयुवकों के ज्ञान चरित्र और व्यवहार को निर्मित एवं परिवर्तित किया जाता है।” इस शिक्षा रूपो प्रक्रिया में शिक्षक का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। शिक्षक को ब्रह्मा, विष्णु, महेश और साक्षात् परम् ब्रह्म माना जाता है- “गुरुर्ब्रह्मः, गुरुविष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरु साक्षात् परम् ब्रहा।” वास्तविक रूप से शिक्षक शिक्षा प्रणाली का आधार है, शिक्षण प्रक्रिया का सच्चा सूत्रधार है. शिक्षा को गति प्रदान करने वाला प्रणेता है, जीवन शिल्पी है, सामाजिक इंजीनियर है, भावी पीढ़ी का निर्माता है, समाज एवं राष्ट्र द्वारा निर्मित मूल्यों का संरक्षक है, सभ्यता और संस्कृति का अभिभावक तथा अनुशासन एवं चरित्र का प्रतीक है, शैक्षिक तन्त्र का हृदय है. शिक्षा जगत् में होने वालों क्रान्ति को धुरी है और सभी का मार्गदर्शक एवं ज्ञान स्रोत है। शिक्षक ही सामाजिक परिवर्तन लाने वाला सशक्त माध्यम है, वहीं नए विचारों का वाहक एवं अग्रदूत है। शिक्षक नई पीढ़ी का शिल्पकार है। शिक्षक समाज की रोड़ को हड्डी को भाँति है, जिस शरीर में रीढ़ की हड्डी स्वस्थ है, वह स्वस्थ रहेगा और जिसमें अस्वस्थ है वह शरीर तोक से कार्य नहीं करेगा अर्थात् मानव जीवन सुखी नहीं होगा। प्रस्तुत पुस्तक में शिक्षा के दार्शनिक आधार, शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधार, शिक्षा के मनोवैज्ञानिक आधार, शैक्षिक अनुसंधान को विधि, शैक्षिक प्रशासन, शैक्षिक मापन एवं मूल्यांकन, शैक्षिक तकनीकी, विशिष्ट शिक्षा तथा अध्यापक शिक्षा सम्बन्धी; गहन, तार्किक वस्तुनिष्ठ प्रश्नो का समावेश कर गागर में सागर भरने की कहावत को चरितार्थ किया है। लेखक उन सभी विद्वानों के प्रति आभारी है, जिनकी कृतियों से पुस्तक के प्रणयन में सहायता ली गई है। प्रकाशक श्री विनय रखेजा जी (आर० लाल बुक डिपो) ने सहयोग एवं निरतर प्रेरणा प्रदान की, इसके लिए लेखक अपना हार्दिक आभार ज्ञापित करते हैं। अन्त में, उन समस्त सुधी पाठको एवं शिक्षाविदों का लेखक आभारी रहेगा जो पुस्तक की कमियों तथा अशुद्धियों की ओर ध्यानाकर्षण करायेंगे तथा भावी संस्करण के संशोधन हेतु अपने र-नात्मक सुझाव भेजने की कृपा करेंगे।
-लेखकगण
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