भूमिका
शिक्षण अधिगम एक द्विध्रुवीय प्रक्रिया है, जिसमें सीखने वाले एवं सिखाने वाले दोनों ही पक्षों की समान महत्ता है अर्थात् अध्यापक एवं छात्र दोनों ही इस प्रक्रिया के समान आधार है। किसी एक पक्ष के भी सहयोग के अभाव में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया अवरुद्ध हो सकती है। अतः यह आवश्यक है कि अध्यापक न केवल अपने स्वयं के विषय में ही जाने बल्कि सीखने वाले अधिगमकर्ता (अध्येता छात्र) को भी समझने का सतत् प्रयास करे। शिक्षक यह जाने कि बालक की मनो-शारीरिक अवस्था कैसी है? उसकी कौन-कौन सी समस्याएँ हैं तथा उसका सम्बन्ध किस प्रकार के वातावरण से है? तभी वह बालक के अधिगम हेतु उपयुक्त शिक्षण की व्यूह रचना बनाने में समर्थ हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप शिक्षण का निर्धारित लक्ष्य प्राप्त होना सम्भव हो सकता है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘अधिगम और शिक्षण’ में न केवल शिक्षण सम्बन्धी विविध आयामों को सरल भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है, बल्कि अधिगम से सम्बन्धित समस्त बिन्दुओं, प्रत्ययों, सिद्धान्तों एवं प्रतिमानों को भी बड़ी कुशलता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। सम्पूर्ण पुस्तक को परिवर्तित पाठ्यक्रमानुसार निम्नलिखित इकाइयों में बाँटा गया है-
(1) शिक्षण की अवधारणा, चरण, स्तर और सिद्धान्त।
(2) शिक्षण के प्रतिमान और व्यूह रचनाएँ।
(3) अधिगम और अधिगम शैलियाँ।
(4) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में मूल्यांकन।
साथ ही मूल्यांकन से सम्बन्धित विविध पक्षों को ही कुशलतापूर्वक उभारकर अध्यापक को इस योग्य बनाने का प्रयास किया गया है कि वह छात्र मूल्यांकन में समर्थ हो सके। निःसन्देह यह पुस्तक शिक्षा महाविद्यालयों के प्रशिक्षणार्थियों एवं सेवारत अध्यापकों के लिये उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक के आगामी संस्करण को और अधिक उपयोगी बनाने के लिये आपके अमूल्य सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी।
मंगलकामनाओं के साथ…..
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