भूमिका
भारतीय समाज विविधताओं से परिपूर्ण है। यहाँ हर प्रदेश की भाषा पृथक् है, वेशभूषा, बोली-भाषा अलग है। सांस्कृतिक परम्पराओं एवं रीति रिवाजों में अन्तर भी पाया जाता है। कोई अत्यन्त निर्धन है तो कोई धनवान। एक ओर गगनूनुचुम्बी इमारत हैं तो दूसरी और झुग्गी-झोंपड़ियाँ। अनेक जातियों उप-जातियों एवं सम्प्रदायों से युक्त विविधताओं के बाद भी यह देश एक सूत्र में संगठित रूप से बँधा हुआ है। यही इस भारतीय गणतन्त्र की विशेषता है जो सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है।
इन विविधताओं के पक्ष को जानते हुए भारतीय संविधान में समानता, न्याय तथा सभी को शिक्षा-प्राप्त हो, इसकी न्यायिक व्यवस्था की गयी है। भारतीय लोकतन्त्र को सशक्त बनाने के लिये शिक्षा को जन-जन तक पहुँचाने की आज महती आवश्यकता है। चूँकि शिक्षा व्यवस्था, अर्थ व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं इसीलिये वर्तमान में शिक्षा के अधिकार जैसे बिन्दु का अनुभव करके उसे सशक्त करने का प्रयास किया गया है। साथ ही विभिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय और वर्ग के व्यक्तियों के लिये शिक्षा के समान अधिकार को संविधान में स्थान दिया गया है। वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण जैसे बिन्दुओं के कारण शिक्षा के क्षेत्रों में कई चुनौतियों ने जन्म लिया है। अतः भावी शिक्षक या छात्राध्यापक को इन सभी का ज्ञान तथा भारत के भविष्य को सँवारने हेतु शिक्षा के कौशलों, विधियों आदि के प्रयोग तथा समायोजन का ज्ञान आवश्य है। प्रस्तुत पुस्तक समसामयिक भारत और शिक्षा को निम्नलिखित आवश्यक प्रकरणों में वर्गीकृत किया गया है-
(1) भारत का संविधान और शिक्षा।
(2) भारत में शिक्षा आयोगों और नीतियों की समीक्षा।
(3) भारतीय शिक्षा में समकालीन मुद्दे।
(4) भारतीय समाज के उभरते मुद्दे और शिक्षा ।
समसामयिक भारत और शिक्षा पुस्तक को नवीन पाठ्यक्रम के प्रत्येक बिन्दु के अनुरूप बी.एड. परीक्षार्थियों हेतु सम्पूर्ण अध्ययन सामग्री के साथ प्रस्तुत किया है। पुस्तक के निर्माण में विश्वविद्यालय से सम्बद्ध शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों के विद्व प्राचार्यों तथा प्राध्यापकों द्वारा अमूल्य सुझाव दिये गये हैं। तदर्थ हम उनका हृदय से आभार प्रकट करते हैं। पुस्तक के आगामी संस्करण के संशोधन हेतु आपके अमूल्य सुझावों की सदैव प्रतीक्षा रहेगी।
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