प्राक्कथन
प्रस्तुत पुस्तक भारतीय शिक्षा एवं आर्थिक मुद्दों का इतिहास विभिन्न विश्वविद्यालयों के M.Ed के नीवनतम् पाठ्यक्रमानुसार छात्रों के हितार्थ लिखिी गई है।
पुस्तक में प्रत्ययों को समझाने का बारीकी से प्रयास किया गया है कि विद्यार्थी प्रत्येक तथ्य को भली-भाँति समझ सकें। शोध कार्यों का यथास्थान समावेश पुस्तक की प्रमुख विशेषता है। प्रत्येक विचारधारा से सम्बन्धित विद्वान का नाम उसी स्थान पर दिया गया है, जहाँ उस धारा की चर्चा हुई है।
हिन्दी भाषा में तकनीकी शब्दावली की कठिनाई होती ही, क्योंकि अंग्रेजी शब्दों में हिन्दी के पर्याय अभी प्रचलित नहीं हुए है, अतः कोष्ठक में अंग्रेजी के समानान्तर शब्दों को देना अनिवार्य समझा गया है। विदेशी भाषा होते हुए भी अंग्रेजी का महत्त्व इस दृष्टि से बहुत व्यापक है कि इसके माध्यम से विशद् साहित्य सुलभ हुआ है। फिर अंग्रेजी परिभाषित शब्द प्रयोग चातुर्य के कारण हमारी बोलचाल में समा गये हैं और मातृभाषा के वही शब्द प्रयोग में न आने के कारण बोधगम्य नहीं है। दूसरे तकनीकी शब्दों का हिन्दी अनुवाद किसी विशेष कोश पर आधारित नहीं है। कुल मिलाकर हमारा प्रयास यही रहा है कि छात्रों को स्वयं पढ़ने पर ही विषय-सामग्री ठीक में समझ आ जाये। कहाँ तक यह सब कुछ हो सका है, यह तो पाठकगण ही बेहतर बता पाएंगे।
हमारी शिक्षा यात्रा के समस्त गुरुवर व स्नेही मित्र जो हमारे मन-मस्तिष्क पर सदैव सुखद स्मृति बन छाये रहते हैं, वे सभी हमारे जीवन पथ के प्रकाश स्तम्भ स्वरूप हैं तथा उन्हीं से प्राप्त आलोक में हमें सदा दिशा-बोध होता है।
इसी क्रम में, अपने बड़ो की स्नेह-शीतल छाया में हमें जो सहज वात्सल्य मिला है उसकी अनुभूति हमारे व्यक्तित्व में सदैव केन्द्रीभूत रहती है।
हमारे शुभचिन्तकों ने विचारों की छाया में छिपकर क्या संकेत दिये, इसे वे ही जाने। धन्यवाद देकर हम उनके उऋणी कैसे हो सकते है, अन्त में पुस्तक के शीघ्र प्रकाशन के लिए हम आर० लाल पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, मेरठ में कर्मठ स्वामी श्री विनय रखेजा एवं श्री अभिनव रखेजा ही का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं।
साथ ही जीवन-पथ पर इस पंक्ति को भी ध्यान में रखिए-
“जीवन अन्तहीन अवसरों का सिलसिला है।”
धन्यवाद।
– लेखकगण
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