प्राक्कथन (PREFACE]
ओइम् असतो मा सदगमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्माअमृतं गमय।
वेद उक्ति ।।
वर्तमान युग विज्ञान एवं तकनीकी का युग है। इस युग में विज्ञान की प्रगति के साथ हमारे सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में अनुसंधान का विशेष महत्व होता है। अनुसंधान द्वारा समाज एवं राष्ट्र की मूल समस्याओं का समाधान, ज्ञान में वृद्धि, मानव विकास तथा मानव कल्याण को महत्व दिया जाता है। वर्तमान समय में अनुसंधान शब्द का प्रयोग ज्ञान की प्रत्येक शाखा के गहन अध्ययन के निमित्त होने लगा है। अतः हम कह सकते हैं कि अनुसंधान किसी क्षेत्र विशेष से सम्बन्धित समस्या का सर्वांगीण विश्लेषण है। वास्तव में अनुसंधान के द्वारा उन मौलिक प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। इस सन्दर्भ में एल०वी० रेडमैन का कहना है कि “अनुसंधान नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक व्यवस्थित प्रयास है।” जबकि डॉ० एम० वर्मा का मानना है कि “अनुसंधान एक बौद्धिक प्रक्रिया है जो नये ज्ञान को प्रकाश में लाती है या पुरानी त्रुटियों या भ्रान्त धारणाओं का परिमार्जन करती है तथा व्यवस्थित रूप से वर्तमान ज्ञान कोष में वृद्धि करती है।”
शिक्षण की समस्याओं द्वारा बालकों के व्यवहार के विकास सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन करने वाली प्रक्रिया को शिक्षा अनुसंधान कहकर सम्बोधित करते हैं इस सन्दर्भ में मुनरो महोदय का कहना है कि “शिक्षा अनुसंधान का अन्तिम लक्ष्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना और शिक्षा के क्षेत्र में नवीन प्रक्रियाओं का विकास करना है।” जबकि डब्ल्यू एम० टैवर्स का मानना है कि “शिक्षा अनुसंधान वह प्रक्रिया है जो
शैक्षिक परिस्थितियों में व्यवहार विज्ञान का विकास करती है।” सामान्यतः विधि का तात्पर्य होता है- सुनिश्चित तथा क्रमबद्ध क्रियाओं द्वारा लक्ष्य को प्राप्त करना। विधि, कक्षा में विषय-वस्तु के प्रस्तुतीकरण की शैली है तथा विधि कार्यपरक शब्द ‘कार्य विश्लेषण’ में प्रयुक्त किया जाता है। विधियों में कार्य तथा प्रस्तुतीकरण को महत्व दिया जाता है तथा जिसका लक्ष्य
प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण देना है।
शिक्षा और मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण, अनुसंधान के सैद्धान्तिक पक्ष के साथ ही साथ सांख्यिकीय प्रविधियों का ज्ञान भी नितान्त आवश्यक है। अनुसंधान कार्य की इस बढ़ती प्रवृत्ति ने शोध कार्यों से सम्बन्धित साहित्य की माँग बढ़ती है। इस बढ़ती हुई माँग को ध्यान में रखकर प्रस्तुत पुस्तक शैक्षिक अनुसंधान की विधियाँ (Methods of Educational Research) लिखी गई है। प्रस्तुत पुस्तक में अनुसंधान के सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ ही साथ सांख्यिकीय प्रविधियों अर्थात् दोनों ही प्रभागों को समाहित करने का प्रयास किया गया है ताकि अनुसंधान से जुड़े व्यक्तियों, प्राध्यापकों, अनुसंधानकर्ताओं तथा उच्च अध्ययन से जुड़े छात्र एवं छात्राओं को यथा सम्भव मार्गदर्शन प्राप्त हो सके जिसके फलस्वरूप वे अपने वांछित लक्ष्य को सहज एवं सरल ढंग से पूरा कर, समाज एवं राष्ट्र के निर्माण एवं विकास में अपना पूरा योगदान कर सकें।
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