भूमिका
शिक्षा मनोविज्ञान अन्तःविषयक आयाम का परिणाम है। आज इस जायाम का उपयोग अध्ययन विषयों में अधिक तीव्रता से किया जा रहा है, जिससे नये-नये अध्ययन क्षेत्रों का विकास हो रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं की जटिलताएँ बढ़ रहीं हैं और विषय के विशेषज्ञ अपने क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिये अन्य सम्बन्धित क्षेत्रों के विशेषज्ञों का सहयोग एवं सहायता लेते हैं। इस प्रकार जो नया ज्ञान प्राप्त होता है, यह एक नया अध्ययन क्षेत्र होता है।
शिक्षा का मुख्य लक्ष्य बालक का सम्पूर्ण विकास करना है। सम्पूर्ण विकास में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावात्मक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास को सम्मिलित किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा की प्रक्रिया को बाल-केन्द्रित माना है। शिक्षा की प्रक्रिया, बालक की योग्यताओं एवं क्षमताओं के अनुरूप होनी चाहिए। शिक्षक को पाठ्यवस्तु के अतिरिक्त छात्रों के मनोविज्ञान का ज्ञान होना चाहिए तथा उस ज्ञान का उपयोग भी आना चाहिए। शिक्षा-मनोविज्ञान के उपयोग से शिक्षा की प्रक्रिया प्रभावशाली तथा सार्थक हो जाती है। बालक-केन्द्रित शिक्षा ने मनोविज्ञान के प्रत्यय, नियमों तथा सिद्धान्तों के उपयोग को महत्व दिया है।
शिक्षा की प्रक्रिया को समझने तथा प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षक को तीन मूल प्रश्नों के उत्तरों को भली-भाँति समझना चाहिए। यह प्रश्न इस प्रकार हैं-
शिक्षा क्यों दी जाए? शिक्षा में क्या दिया जाए? शिक्षा कैसे दी जाए? जो इन प्रश्नों का उत्तर दे सकता है, उसे अन्य क्षेत्रों के विषय विशेषज्ञों की सहायता लेनी पड़ती है। प्रथम प्रश्न ‘
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