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(ग्यारहवाँ संस्करण)
विभिन्न विश्वविद्यालय से सम्बन्धित शिक्षाशास्त्र के सभी प्रवक्ताओं द्वारा * विद्यार्थी-शिक्षकों द्वारा ‘शिक्षा सिद्धान्त’ की निरन्तर बढ़ती हुई माँग के कारण हमें इस पुस्तक के ग्यारहवें संस्करण को प्रस्तुत करते हुये हार्दिक प्रसन्न हो रही है। इसके लिये हम उन सभी शिक्षा, प्रेमियों के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने इस पाठ्य-पुस्तक को इतनी जल्दी लोकप्रिय बना दिया है।
चूँकि इस पुस्तक की माँग चौ० चरण सिंह विश्वविद्यालय के अतिरिक्त अन्य विश्वविद्यालयों की ओर से भी निरन्तर बढ़ती जा रही है, इसलिये हमने राष्ट्र के विभिन्न विश्वविद्यालयों की बी० ए०, एल० टी० बी० टी०, बी० एड०, एम० एड० तथा एम० फिल० कक्षाओं के नवीनतम पाठ्यक्रमों को दृष्टि में रखते हुए इस संस्करण में आधारभूत संशोधन एवं परिवर्धन कर दिया है।
हिन्दी भाषा की सर्वमान्य सरल शब्दावली के साथ-साथ आंग्ल भाषा के पारिभाषिक पर्याय, सुप्रसिद्ध विचारकों, शिक्षाशास्त्रियों तथा लेखकों के स्पष्ट उदाहरणों एवं प्रत्येक अध्याय के अन्त में लिखा हुआ सार-संक्षेप वस्तुनिष्ठ प्रश्न इस संस्करण की प्रमुख विशेषतायें हैं। अतः हमें पूर्ण विश्वास है कि उक्त गुणों से परिपूर्ण ‘शिक्षा सिद्धान्त’ का यह ग्यारहवाँ संस्करण मेरठ विश्वविद्यालय, जीवाजी (ग्वालियर), राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, रुहेलखण्ड गढ़वाल तथा एम० डी० रोहतक, रांची, जबलपुर, पटना, फैजाबाद तथा महाराष्ट्र आदि विभिन्न भारतीय विश्वविद्यालयों के लिये भी पूर्ण रूप से उपयोगी सिद्ध होगा।
मैं उन सभी मित्रों का हृदय से आभारी हूँ, जिन्होंने इस पुस्तक की लिखित अथवा मौखिक रूप से प्रशंसा की है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि शिक्षा में रुचि रखने वाले सभी सज्जन इस संस्करण का अधिक स्वागत करेंगे तथा इसे श्रेष्ठतम बनाने के लिये अपने बहुमूल्य सुझाव भेजने की कृपा करेंगे। अन्त में, पुस्तक के ग्यारहवें संस्करण को इतनी जल्दी प्रकाशित करने के लिए मैं प्रकाशक महोदय को धन्यवाद देना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ।
शिक्षा संकाय
– नव रत्न स्वरूप सक्सैना
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