भूमिका
कोठारी शिक्षा आयोग (1966) ने प्राथमिक शिक्षा की व्यापकता पर संस्तुति की और बालकों के विशिष्ट समूह की शिक्षा व्यवस्था को महत्व दिया। भारतीय संविधान में शिक्षा का सभी को सनान अवसर उपलब्ध कराने का प्रविधान है। असमर्थी, अपंग तथा बाधित बालकों की शिक्षा का उत्तरदायित्व ‘भारत के समाज कल्यारण मंत्रालय का था। परन्तु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) तथा क्रियान्वयन के प्रारूप (1992) ने प्राचीन सिद्धान्तों को अपनाने की सलाह दी और बाधितों की शिक्षा का उत्तरदायित्व शिक्षा विभाग को दिया। विशिष्ट बालकों की शिक्षा को मुख्य धारा में सम्मलित किया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में यह दृढ़ता पूर्व कहा कि जहाँ तक सम्भव हो शारीरिक रूप से अपंग, बाधित तथा अन्य असमर्थी बालकों की शिक्षा सामान्य बालकों के साथ होनी चाहिए। गम्भीर रूप से बाधितों के लिए विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश दिया जाये। कोठारी आयोग ने समन्वित शिक्षा की भी घोषणा की। बाधितों की शिक्षा को मुख्य धारा में सम्मलित करने के परिणाम स्वरूप विशिष्ट शिक्षा का विकास अधिक तीव्रता से हुआ है। विशिष्ट शिक्षा, शिक्षा का एक वैकल्पिक रूप है जिसके अन्तर्गत शिक्षा के उनसभी पक्षों को सम्मलित किया जाता है जो बालकों शारीरिक मानसिक, सामाजिक रूप से बाधित विशिष्ट शिक्षा से तात्पर्य विशिष्ट अनुदेशन का प्रारूप व कार्यक्रम विकसित करना जो विशिष्ट बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। यह सामान्य बालकों के शिक्षा-कार्यक्रमों के अतिरिक्त संसाधन भी होते है। इन्हें शिक्षा की मुख्य धारा तथा समन्वित शिक्षा भी कहते है।
विशिष्ट शिक्षा के प्रत्यय तथा प्रारूप को प्रस्तुत पुस्तक में दिया गया है। इसके अन्तर्गत अपंग, बाधित तथा असमर्थी बालकों का अर्थ, परिभाषायें, विशेषताएं, वर्गीकरण, पहिचान, कारण, समस्याएं, उपचार, तथा शैक्षिक प्रविधानों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त बहु-बाधितों, विशिष्ट अध्यापकों का प्रशिक्षण, अनुकूलित विधियों एवं प्रविधियों, सहायक प्रवधियों तथा शोध अध्ययनों को भी दिया गया है। विशिष्ट शिक्षा की पाठ्वस्तु के प्रारूप को छः खण्डों के अन्तर्गत बाईस (22) अध्यायों में प्रस्तुत किया गया है। यह खण्ड इस प्रकार हैं-
1 – विशिष्ट शिक्षा का प्रत्यय, II प्रतिभाशाली तथा सर्जनात्मक बालक,
III – शारीरिक रूप से बाधित बालक, IV अधिगम असमर्थी बालक, V – सामाजिक तथा संवेगात्मक रूप से विक्षिप्त बालक, VI- विशिष्ट शिक्षकों का प्रशिक्षण एवं शोध अध्ययन । इन छः खण्डों में ‘विशिष्ट शिक्षा के प्रारूप को दिया गया है। परन्तु मध्य के चार खण्डों में ‘विशिष्ट शिक्षा की मूल पाठ्यवस्तु को व्यवस्थित किया गया है।
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