भूमिका
“शोध में निरन्तर अभ्यास करना सालिक तप है”
“ज्ञान के समान संसार में कोई वस्तु पवित्र नहीं है”
शिक्षाशास्त्र का एक अनुशासन के रूप में अभी हाल का ही विकास है. परन्तु इसमें शोध-विधि विज्ञान को अधिक विकसित कर लिया है। शौच के अन्तर्गत वैज्ञानिक विधियों एवं प्रविधियों को समस्याओं के समाधान हेतु प्रयुक्त किया जाता है। शोध की वैज्ञानिक विधियाँ शिक्षकों तथा शिक्षाशास्त्रियों के लिए अधिक उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। आज शिक्षक के समक्ष विविध प्रकार की समस्यायें है जिनका समाधान वैज्ञानिक शोध विधियों द्वारा ही किया जा सकता है। शिक्षा में नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन भी किया जाता है।
शिक्षा अनुसन्धान पर हिन्दी में अनेक पुस्तकें उपलब्ध है, उनमें शोध-विधि विज्ञान के सैद्धान्ति पक्ष को प्रमुख स्थान दिया गया है. परन्तु उनके व्यावहारिक पक्ष का विवेचन नहीं किया है जबकि शोध विधि का प्रयोगात्मक पक्ष अधिक उपयोगी होती है। शोध छात्रों तथा निर्देशक को पर्याप्त सूचनायें नहीं मिलती हैं। इस पुस्तक में लेखक ने शोध-विधि विज्ञान के सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक पक्षों को समान महत्व दिया है। इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य शोच-कर्ता को अनुसन्धान के सिद्धान्तों को प्रभावी रूप में प्रयुक्त करने के सक्षम बनाना है। शिक्षण तथा शोध की क्रियायें साथ-साथ चलनी चाहियें तभी उत्तम प्रकार के शोध कार्यों का संचालन किया जा सकता है. जिससे उत्तम एवं प्रभावी शिक्षण का विकास किया जा सकता है। यह ‘शिक्षा अनुसन्धान’ की पुस्तक अधिक व्यवहारिक है।
इस पुस्तक में उन सभी प्रकरणों को सम्मिलित किया गया है जो अन्य पुस्तकों में उपलब्ध हैं, परन्तु उन प्रकरणों का व्यवस्था क्रम व्यावहारिक दृष्टि से किया गया है जो अन्य पुस्तकों में भिन्न प्रकार है। लेखक शोध-विधि विज्ञान पाठ्यवस्तु का शिक्षण पिछले पैंतीस वषों में एम० एड० एम० फिल० तथा शेध छात्रों के स्तर पर कर रहा है. छात्र यह अनुभव करते रहे कि जैसा पढ़ाया जाता है वैसी एक पुस्तक भी होनी चाहिए। छात्रों के आग्रह पर इस पुस्तक को लिख का प्रयास किया है। अंग्रेजी संस्करण प्रकाशित होने पर हिन्दी भाषी छात्रों में इसकी आवश्यकता का अनुभव किया।
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