भूमिका
भारतीय शिक्षा का इतिहास, विकास एवं समस्याएँ पुस्तक का प्रस्तुत संस्करण बीएएमए शिक्षाशास्त्र एवं बी०ए०एम०एड शिक्षक शिक्षा के अध्यताओं के लिए तैयार किया गया है।
इतिहास का अध्ययन कालक्रमानुसार किया जाता है और किसी काल के इतिहास का अध्ययन एक विशेष तार्किक क्रम में किया जाता है। इस क्रम के अभाव में ऐतिहासिक तथ्यों को समझना और स्मरण रखना कठिन होता है। तब भारतीय शिक्षा के इतिहास का अध्ययन भी कालक्रमानुसार किया जाना चाहिए और किसी काल की शिक्षा प्रणाली का अध्ययन एक विशेष तार्किक क्रम में किया जाना चाहिए। इस पुस्तक में कुछ ऐसा ही प्रयास किया गया है।
हमारे देश की शिक्षा का इतिहास अति प्राचीन है। इसका अध्ययन सामान्यतः तीन कालों के अन्तर्गत किया जाता है-प्राचीन काल, मध्य काल और आधुनिक काला प्राचीन काल को सामान्यतः दो उपकालों में विभाजित किया जाता है-वैदिक काल और बौद्ध काला मध्यकाल को भी सामान्यतः दी उपकालों में विभाजित किया जाता है-पूर्व मुगल काल और मुगल काल। और आधुनिक काल को शिक्षा की दृष्टि से चार उपकालों में विभाजित किया जाता है-ईसाई मिशनरी काल, ईस्ट इण्डिया कम्पनी काल, ब्रिटिश शासन काल और स्वतन्त्र काल। इस पुस्तक में भारतीय शिक्षा के इतिहास का अध्ययन इसी कालक्रमानुसार प्रस्तुत किया गया है। वैदिक काल, बौद्ध काल और मध्य काल की शिक्षा प्रणालियों का अध्ययन समग्र रूप से किया गया है, इसलिए उसका क्रम रहा है-प्रशासन एवं वित्त, संगठन एवं संरचना, उद्देश्य एवं आदर्श, पाठ्यचर्या, शिक्षण विधियों, अनुशासन, शिक्षक, शिक्षार्थी, शिक्षण संस्थाएँ एवं शिक्षा के अन्य पक्ष। यह एक तार्किक क्रम है। आधुनिक काल में शिक्षा के विकास का अध्ययन शिक्षा सम्बन्धी प्रस्तावों एवं नीतियों, शिक्षा सम्बन्धी आयोगों एवं समितियों के सुझावों और शिक्षा सम्बन्धी प्रयोगों के आधार पर किया गया है। शिक्षा सम्बन्धी प्रस्तावों एवं नीतियों और आयोगों एवं समितियों के सुझावों का अध्ययन उनके अपने भिन्न-भिन्न क्रों में प्रस्तुत न करके एक विशेष तार्किक क्रम में प्रस्तुत किया गया है; यथा-प्रशासन एवं वित्त, संगठन एवं संरचना, पूर्व प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा, शिक्षक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा और स्त्री शिक्षा आदि। परन्तु कुछ सन्दर्भों में थोड़ा परिवर्तन भी करना पड़ा है। हमें विश्वास है कि इस विशिष्ट तार्किक क्रम में अध्ययन करने से तथ्यों को समझने और उन्हें स्मरण रखने में सुविधा होगी। इस पुस्तक में किसी भी समय की शिक्षा प्रणाली, किसी भी आयोग अथवा समिति के सुझावों और किसी भी शिक्षा सम्बन्धी प्रस्ताव अथवा नीति का मूल्यांकन कुछ आधारभूत मानदण्डों के आधार पर किया गया है। तब उनका वस्तुनिष्ठ होना स्वाभाविक है। साथ ही किसी भी सन्दर्भ में पाठकों को स्वयं सोचने और निर्णय लेने के लिए विवश किया गया है और उन्हें अपने अनुभवों का प्रयोग करने के लिए विवश किया गया है। इससे पाठक विषय-सामग्री को आत्मसात् कर सकेंगे और उसे स्मरण रख सकेंगे, यह विश्वास है।
सन्दर्भवश जो आँकड़े दिए गए हैं यद्यपि वे सरकारी स्रोतों से लिए गए हैं, परन्तु वे कितने सही हैं इसके विषय में दावे के साथ कुछ नहीं कहा
Reviews
There are no reviews yet.