भूमिका
भू-मण्डल पर असमानता और विविधता प्राकृतिक एवं सामाजिक कारणों से पायी जाती है। साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में प्रायः बालक शारीरिक तथा मानसिक रूप से भी असमान होते हैं। कुछ बालक प्राकृतिक कारणों से शारीरिक जटिलताओं से ग्रसित होते हैं तो कुछ आर्थिक तथा सामजिक कारणों से पिछड़े होते हैं, कुछ बालक अत्यन्त प्रतिभाशाली तो कुछ मानसिक दृष्टि से अत्यन्त दुर्बल होते हैं। सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से भी छात्र-छात्राओं में विविधता एवं असमानता पायी जाती है। इस सामाजिक तथा आर्थिक विविधता को देखते हुए समावेशी विद्यालय शिक्षा के कार्य में सहयोग करते हैं। इस प्रकार सभी शिक्षार्थियों के लिये उनकी वैयक्तिक समस्याओं को समझते हुए, किस प्रकार के उपागमों को शिक्षण व्यवहार में लाया जाय ? यह कार्य समावेशी विद्यालयों की शिक्षा के द्वारा ही सम्भव होता है।
वर्तमान समय में समावेशी शिक्षा विषय का जन्म विशिष्ट तथा सामान्य बालकों की आवश्यकताओं के सन्दर्भ में उनकी विशेष शिक्षा व्यवस्था के लिये हुआ है। विश्व-समाज में सभी प्रकार के बालक पाये जाते हैं; जैसे- प्रतिभाशाली, पिछड़े, मन्द बुद्धि, सृजनात्मक, अपराधी, विकलांग, वंचित तथा असामान्य व्यवहार करने वाले अपराधी तथा जटिल बालक। मनुष्य में वैयक्तिक भिन्नता तथा सामाजिक विविधता मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही उत्पन्न हुई है। इन प्रकृति प्रदत्त शारीरिक विभिन्नताओं तथा सामाजिक विविधताओं को स्वीकार करते हुए एक शिक्षक को अपनी शिक्षण विधाओं को बालकों के अनुसार ढालना होता है तथा परिस्थिति अनुसार परिवर्तन करना होता है। इन सभी बिन्दुओं को देखते हुए भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में समावेशी विद्यालय तथा समावेशी शिक्षा जैसे विषय की उपयोगिता अनुभव की जाने लगी है। यह पुस्तक इसके समाधान हेतु एक सफल प्रयास है।
पुस्तकान्तर्गत पाठ्यक्रमानुसार निम्नलिखित विषयवस्तु की चर्चा की गयी है- (1) विशिष्टता की अवधारणा और विशेष आवश्यकता वाले वालक। (2) अक्षमता/विकलांगता के सन्दर्भ में वैधानिक और नीति परिप्रेक्ष्य। (3) विशेष आवश्यकताएँ और समावेशन। (4) समावेशी व्यवस्था के लिये अभ्यास और सहयोग तन्त्र।
प्रस्तुत सामग्री शिक्षक प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम के सभी पक्षों पर सरस, सुबोध, ग्राह्य शैली में तथा अपनी विशिष्टताओं से युक्त है। हमें पूर्ण विश्वास है कि समावेशी विद्यालय तथा समावेशी शिक्षा की यह सामग्री आपका अध्ययन तथा परीक्षा प्रयोजन हल कर सकेगी।
पुस्तक-निर्माण में शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों के विद्व प्राचार्य एवं प्रवक्ताओं ने समय-समय पर हमें सुझाव देकर प्रकाशन में जो सहयोग दिया है उसके लिये हम हृदय से आभार प्रकट करते हैं। पुस्तक के निर्माण में हर सम्भव प्रयत्न किया गया है कि सामग्री गुणवत्ता से ओत-प्रोत हो, फिर भी कुछ कमियाँ यदि आपको अनुभव होती हैं तो हमारी आपसे प्रार्थना है कि इस पर हमारा ध्यान संशोधनार्थ अवश्य आकर्षित करें। मंगलकामनाओं सहित..
सम्वत् 2074
जनवरी, वर्ष 2018
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