प्रकाशकीय
बाल्यावस्था को मानव जीवन का प्रथम स्वर्णिम निर्माण काल माना जाता है। बालक में जो संस्कार बाल्यावस्था में विकसित किये जाते हैं, वही संस्कार उसका आजीवन साथ देते रहते हैं। बालक को उचित संस्कार एवं शिक्षा प्रदान करना प्रत्येक राष्ट्र एवं समाज का प्रमुख दायित्त्व है।
कुछ बालकों में जन्म से ही अनेक प्रकार के उच्चारण दोष, व्यावहारिक दोष एवं शारीरिक विकास सम्बन्धी दोष पाये जाते हैं। इन दोषों का उपचार करना विद्यालय एवं समाज के उचित प्रशिक्षण द्वारा ही सम्भव हो सकता है। बालकों की भाषा, ज्ञानेन्द्रिय प्रशिक्षण एवं शैक्षिक क्रियाकलाप के विकास में शिक्षक तथा विद्यालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। एक कुशल शिक्षक को यह तथ्य स्पष्ट रूप से ज्ञात होना चाहिये कि वह किस प्रकार बालकों के भाषायी, शैक्षिक एवं शारीरिक विकास में अपनी सार्थक भूमिका का परिस्थितिजन्य निर्वहन कर सकता है ?
राधा प्रकाशन मन्दिर द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक ‘भाषा, ज्ञानेन्द्रिय प्रशिक्षण एवं शैक्षिक क्रियाकलाप’ बालकों के सर्वांगीण विकास तथा शिक्षकों के मार्गदर्शन में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी क्योंकि इस पुस्तक में उन समस्त विधियों एवं गतिविधियों का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है जो कि बालकों के भाषायी विकास, ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण एवं शैक्षिक विकास को सम्भव बनाती हैं। पुस्तक के अध्ययन के उपरान्त एक शिक्षक में उन सभी योग्यताओं का विकास होगा जो कि एक कुशल शिक्षक के लिये आवश्यक हैं। इन क्षमताओं का उपयोग अध्यापक बालकों की ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण एवं शैक्षिक विकास में कर सकेगा-ऐसा विश्वास है। अधिकाधिक उपयोगी बनाने ह
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