आमुख
आज जहाँ एक ओर शिक्षा के दार्शनिक एवं वैज्ञानिक पक्षों को महत्वपूर्ण स्थान दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर वर्तमान युग की माँग के अनुसार शिक्षा के सामाजिक पक्ष पर भी विशेष बल दिया जा रहा है। शिक्षा के सामाजिक पक्ष से अभिप्राय यह है कि शिक्षा की व्यवस्था समाज की आवश्यकताओं, आकांक्षाओं एवं आदर्शों को आधार बनाते हुए दी जानी चाहिये। दूसरे शब्दों में शिक्षा द्वारा बालकों में सामाजिक भावनाओं एवं सामाजिक गुणों को विकसित किया जाये, जिससे वे अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का पालन-पोषण कर सकें एवं कुशल नागरिक के रूप में अपने भार को स्वयं वहन करते हुए समाज की प्रगति में अपना योगदान दे सकें। इस प्रकार से शिक्षा का सामाजिक पक्ष इस बात पर जोर देता है कि शिक्षा द्वारा बालकों को सुयोग्य, सच्चरित्र एवं कर्मठ नागरिक बनाया जाये, जिससे समाज सदैव उन्नति के शिखर पर चढ़ता रहे। प्रस्तुत पुस्तक में शिक्षा के इन्हीं सामाजिक पक्षों से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्तों एवं विषय-वस्तु को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक पाठकों के लिए अधिक लाभप्रद सिद्ध होगी।
इस पुस्तक के प्रणयन में मेरे गुरुजनों एवं शुभचिन्तकों की जो प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रेरणा मुझे प्राप्त होती रही, उसका मैं हृदय से आभारी हूँ।
मेरा सभी पाठकों से विनम्र अनुरोध है कि पुस्तक को और भी अधिक उपयोगी बनाने के लिए अपने उचित सुझाव समय-समय पर भेजकर अनुगृहित करें। इसके साथ-साथ जिन विद्वान लेखकों की कृतियाँ, लेखों एवं खोजों की छत्रछाया में इस पुस्तक का प्रणयन हुआ है, उनके प्रति भी मैं अपना आभार व्यक्त करता हूँ। अन्त में इस पुस्तक के जाने-माने एवं लोकप्रिय प्रकाशक श्री विनय रखेजाजी का आभारी हूँ जिन्होंने अति अल्प समय में इस पुस्तक को प्रकाशित कराया।
सधन्यवाद !
एफ-4, ।। फ्लोर टीचर्स अपार्टमेण्ट इन्दिरा विहार कालोनी
– डॉ० धर्मेन्द्र कुमार
मेरठ रोड, बिजनौर।
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