आमुख
भारतीय विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शिक्षण-प्रशिक्षण, शिक्षा निष्णात तथा प्रवक्ता बनने के इच्छुक यू.जी.सी. द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा की तैयारी में लगे जिज्ञासु अध्येताओं के हाथों में प्रस्तुत पुस्तक समर्पित करते हुए आत्मिक सुखानुभूति हो रही है। पुस्तक के प्रणयन में विद्यार्थियों की उन अनेक व्यावहारिक समस्याओं को दृष्टिपथ में रखा गया है, जिसे मैंने शिक्षा दर्शन के अध्ययन-अध्यान के मध्य व्यक्तिगत रूप से न केवल सुना है, वरन् अनुभव भी किया है। बी.एड. एवं एम.एड. के विद्यार्थियों को शिक्षा दर्शन नामक एक अनिवार्य प्रश्न पत्र पढ़ाया जाता है, जिसका उद्देश्य उनमें शिक्षा के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण उभारने के साथ शैक्षिक समस्याओं पर दार्शनिक दृष्टि से अध्ययन और समाधान प्रस्तुत करने की योग्यता का विकास है। विद्यार्थियों हेतु बाजार में वैसे तो पुस्तकों की कमी नहीं है। हाँ, वास्तविक कमी है उनकी व्यावहारिक कठिनाइयों को सम्यक् दृष्टिगत करने वाली स्तरीय पुस्तकों की जिनमें उनके लिए अपेक्षानुरूप और सन्तोषप्रद विषय सामग्री का सरल, सहज और ग्राह्य हिन्दी माध्यम में सुसंगठन हो। अभी तक ऐसी पुस्तकें या तो अंग्रेजी में हैं और यदि हिन्दी में हैं भी, तो उनकी भाषा अंत्यन्त क्लिष्ट है।
सम्प्रति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रवक्ता पदों पर नियुक्ति हेतु राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (N.E.T.) का आयोजन हो रहा है। इस परीक्षा में शिक्षा शास्त्र के विद्यार्थियों को सारगर्भित पुस्तकों की आवश्यकतानुभूति होती है। राष्ट्रीय स्तर की इस पात्रता परीक्षा के आगमन के पश्चात एतन्निमित्त उद्देश्यों की पूर्ति करने वाली पुस्तकों का विद्यार्थियों के समक्ष अभाव रहा है। भारतीय विश्वविद्यालयों के निष्णात स्तरीय शिक्षाशास्त्र के पाठ्यक्रमों में विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों की विशद विवेचना की वांछना होती है। इस विचार से प्रस्तुत पुस्तक में आदर्शवाद, प्रकृतिवाद, प्रयोजनवाद, यथार्थवाद जैसे प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदायों पर प्रचुर सामग्री देने के साथ मार्क्सवाद, अस्तित्ववाद और मानवतावाद को भी समाहित किया गया है। कुछ विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भारतीय शिक्षा को दिशा देने वाले आधुनिक भारतीय शिक्षाशास्त्रियों के शैक्षिक विचारों को भी स्थान प्रदत्त है। विश्वविद्यालयों की वांछना और विद्यार्थियों की सुविधा के मध्य समन्वय करते हुए स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी और महर्षि अरविन्द के शैक्षिक चिन्तन को भी प्रस्तुत पुस्तक में समाविष्ट कर लिया गया है।
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