भूमिका
शिक्षा तथा मनोविज्ञानविज्ञान (Belavioural Science) के क्षेत्र में आते हैं। मनुष्य को प्रकृति का अध्ययन विषयों के शोध-अध्ययनों तथा मापन की प्रक्रिया में व्यवहारीको ही की किया जाता है। इन दिया जाता है। इन ि के चापन की प्रक्रिया अप्रत्यक्ष (Indirect) होती है, सभी मनुष्य के गुणों (variables) कामापन व्यवहारों से किया जाता है, इस प्रकार मापन की प्रक्रिया की विशेषताएँ हैं-
1. मनुष्य तथा परतु का मापन नहीं किया जाता है, अपितु उसके गुणों (यरी) का मापन किया जाता है।
2. मापन की प्रक्रिया अप्रत्यक्ष होती है इसमें व्यवहारों की सहायता से सभी गुणों (यरों) का मापन किया जाता है।
3. मापन की प्रक्रिया सापेक्ष (Relative) होती है और सन्दर्भ विन्दु समूह होता है।
4. मापन प्रक्रिया से प्राप्तांक अर्थहीन होते हैं, साख्यिकी के उपयोग से उन्हें सार्थक बनाया जाता है तथा गुणों का अर्थापन किया जाता है।
5. मापन की प्रक्रिया में गुणों (Variables) की व्यवहारिक परिभाषाओं (Operational Definitions) तथा अवधारणाओं का विशेष महत्व होता है।
शिक्षा तथा मनोविज्ञान के मापन की प्रक्रिया की इन विशेषताओं के होते हुए भी इनमें वैज्ञानिक शोध अध्ययनों को अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है। अनुसंधान विधियों में प्रायोगिक विधि को अधिक
महत्व दिया जाता है। प्रायोगिक विधि की तीन मूल विशेषताएँ है, जो इस प्रकार हैं-
1. प्रायोगिक विधि की परिस्थिति नियंत्रित (Control Situation) होती है, जितना नियन्त्रण कठोर होता है, शोध निष्कर्षों के परिणाम उतने ही अधिक शुद्ध प्राप्त होते हैं।
2. प्रयोग की परिस्थितियों तथा क्रियाओं का निरीक्षण (Observation) किया जाता है और उनकी गतिविधियों को समझने का प्रयास किया जाता है।
3. प्रयोग द्वारा अभिक्रियाओं के प्रभावों का मापन किया जाता है। मापन में विश्वसनीय तथा वैध उपकरणों का उपयोग किया जाता है। मापन की प्रक्रिया में शुद्धता (Precision) का प्रयास किया जाता है।
प्रायोगिक विधि में न्यादर्श/समूह को दो समान समूहों में विभाजित करके एक को प्रयोगात्मक मूह (Experimental Group) तथा दूसरे को नियंत्रित समूह (Control Group) में रखा जाता है। योग में समूह के आकार की अपेक्षा समानता को महत्व दिया जाता है। बड़े समूह पर नियन्त्रण नहीं कया जा सकता है। इसमें कारण-प्रभाव के लिए एक-चर सिद्धान्त (Law of Single Variable) का नुसरण किया जाता है।
प्रयोग की प्रक्रिया के आयोजन में प्रारूप (Design) का उपयोग किया जाता है। प्रायोगिक रूपों (Experimental Designs) को शोध समस्याओं, शोध के उद्देश्यों तथा प्रयोग की त्रुटियों को म करने की दृष्टि से विकसित किया गया है। वाइनर, एडवर्ड, लिण्डक्विस्ट आदि का इस क्षेत्र में गदान अधिक रहा है। इस पुस्तक के लिखने में E.F. Lindquist की ‘Basic Experimental esigns’ की पाठ्यवस्तु को आधार बनाया गया है।
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