विकासशील भारत में पूर्व प्राथमिक शिक्षा
1. (अ) अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य एवं लक्ष्य। (ब) औपचारिक, अनौपचारिक तथा सहज-संयोगिक शिक्षा व्यवस्थाएँ। (स) शिक्षा की संस्थाएँ-घर, परिवार, पास-पड़ोस, समाज तथा विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ, जन संचार माध्यम। (द) पूर्व प्राथमिक शिक्षा, उद्देश्य एवं लक्ष्य, स्वरूप, विभिन्न शिक्षा संस्थानों का शिशु । शक्षा एवं शिशु देखभाल पर प्रभाव एवं उसमें शिक्षक की भूमिका।
2. शिशु संभाल तथा पूर्व प्राथमिक शिक्षा की अवधारणा तथा लक्ष्य एवं प्राथमिक शिक्षा-शिक्षक।
3. पूर्व प्राथमिक शिक्षा के विकासक्रम में निम्नांकित शिक्षाशास्त्रियों का योगदान- (अ) कमेनियस। (ब) रूसो। (स) पेस्टालॉजी। (द) फ्रॉबेल। (य) मॉण्टेसरी। (र) जॉन डीवी।
4.1 स्वतन्त्रता से पूर्व भरत में पूर्व प्राथमिक शिक्षा-आन्दोलन- (अ) ताराबाई मोदक। (ब) रवीन्द्रनाथ टैगोर। (स) गिजुभाई बधेका। (द) महात्मा गाँधी। (य) मिशनरीज का प्रभाव। 4.2 स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में पूर्व प्राथमिक शिक्षा- (अ) केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड (सी.एस.
डब्ल्यू.ई.)। (ब) भारतीय बाल कल्याण परिषद् (आई.सी.सी.डब्ल्यू.)। (स) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) तथा राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण संस्थान (एस.आई.ई. आर.टी. ) तथा एन.आई.पी.सी.सी.डी.। (द) पूर्व प्राथमिक शिक्षा में भूमिका।
5. (अ) परिवार का उद्गम एवं विकास। (ब) बालक के व्यक्तित्व विकास में परिवार का महत्त्व। (स) आधुनिक सभ्यता एवं संस्कृति में परिवार भारतीय परिस्थितियों में परिवार का विशिष्ट अध्ययन, उसका शिशु शिक्षा पर प्रभाव। (द) स्वतन्त्र भारत में परिवार, राष्ट्रीय योजना एवं बालक। (य) भारत में ग्राम्य और शहरी क्षेत्रों में कार्यरत् बालकों के शिशु कल्याण कार्य और अन्य शिशु संगठनों का महत्त्व। स्वयं सेवी संस्थाएँ तथा इनके द्वारा शिशु कल्याण, शिशु देखभाल तथा पूर्व प्राथमिक शिक्षा हेतु किये जाने वाले कार्य।
6. बाल सदन या पूर्व प्राथमिक विद्यालय, आधुनिक सभ्यता और संस्कृति में इसका महत्त्व (भारतीय परिस्थितियों के विशेष सन्दर्भ में) गाँव और नगर के बालकों के लिये बाल सदन, बालकों का परिवार के साथ सह-सम्बन्ध, बाल सदन का परिवार के साथ सहयोग, डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता एवं अन्य बाल संगठन।
7. पर्यावरण पर आधारित शिक्षा, समुचित क्रिया के माध्यम से शिक्षा, वाल सदन का संगठन, विद्यालय भवन का आन्तरिक और बाह्य वातावरण, बाल सदन में चयनित क्रियाओं और विषयों के चयन के कारण बाल सदन के संगठन के आर्थिक पहलू का अध्ययन, बालकों की संख्या तथा शिक्षण सामग्री आदि। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बाल सदन के संगठन में अन्तर।
8. बाल सदन में शिक्षक की भूमिका, शिक्षक में विशेष गुणों की आवश्यकता, व्यक्तिगत एवं वर्ग में प्रदर्शन पाठ की विधि, बालकों की विकासशील और विविध रूपों की आवश्यकता के अनुरूप शैक्षिक साधन सामग्री निर्माण करने की विधियाँ।
9. सामान्यीकरण (जनरलाइजेशन) का अर्थ, बालकों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में इसका महत्त्व, सदन के शिक्षक के लिये सामान्यीकरण का सर्वप्रथम एवं सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान, सामान्यीकरण और माता-पिता का सहयोग से सप्तान्यीकरण और मानसिक रोगों की अवाप्ति और उनका उपचार, सामान्यीकरण और एकाग्रता (कन्सन्ट्रेशन)।
10. बाल सदन में स्वतन्त्रता और आत्मानुशासन, बाल सदन में वैयक्तिक और सामाजिक शिक्षा, बाल सदन में त्रुटि नियन्त्रण का रचनात्मक महत्त्व, हस्तक्षेप करने और हस्तक्षेप न करने का सिद्धान्त, शिक्षा को क्रान्ति में वास्तविक मार्ग-दर्शन बालक की पूर्व प्राथमिक शिक्षा का उच्च शिक्षा पर प्रभाव।
11. बाल सदन में बालक की सहायता, उसके अध्ययन और अववोध के माध्यम से मानव व्यक्तित्व पर नवीन प्रकाश, प्रौढ़ और मानव समाज पर बालक का प्रभाव।
12. शिशु दखभाल एवं शिक्षा तथा शिशु शिक्षकों से सम्बन्धित त्रिभिन्न योजनाओं एवं निम्नांकित संस्थाओं
का अध्ययन कर प्रतिवेदन तैयार करना तथा इसकी सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक जानकारी- (अ) मॉण्टेसरी विद्यालय। (ब) आँगनवाड़ी। (स) बालबाड़ी। (द) बाल सदन, वाल भवन। (य) प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय। (२) एस.ओ.एस. ग्राम। (ल) समन्वित बाल विकास सेवा (आई.सी.डी.एस.)। (व) चल बालघर।
13. राष्ट्रीय शिक्षा आयोग. 1964-66 तथा प्राथमिक शिक्षा के सन्दर्भ में अनुशंषाएँ।
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