प्राक्कथन [PREFACE]
ओइम् असतो मा सदगमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्माअमृतं गमय।
वेद उक्ति ।।
किसी भी संगठन के कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रशासन की आवश्यकता होती है। अन्य संगठनों के प्रशासन एवं शिक्षा प्रशासन में भी बड़ा अन्तर है। शिक्षा प्रशासन के अन्तर्गत शिक्षा के कार्य यथा बालकों, युवकों और कभी-कभी प्रौढ़ों की शिक्षा व्यवस्था करना एवं उनके व्यक्तित्व का उचित निर्माण आता है। औद्योगिक प्रशासन का मुख्य लक्ष्य अधिकतम् उत्पादन रहता है। अच्छा औद्योगिक प्रशासक वह माना जाता है जो कम निवेश से अधिक उत्पादन दे। औद्योगिक प्रशासन के लिए निर्जीव पदार्थ को काँटछाँटकर या अन्य प्रकार से रूप परिवर्तित करना होता है जबकि शैक्षिक प्रशासन का कच्चा माल सजीव बालक होता है। इस सजीव बालक रूपी कच्चे माल को सुनिश्चित सही रूप देने के लिए काफी विवेक, धैर्य, दूरदर्शी एवं लगन की आवश्यकता होती है जिसके लिए शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबन्धन की नितान्त आवश्यकता महसूस की जा रही है। वर्तमान समय में शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबन्धन एवं स्वतन्त्र अनुशासन के रूप में विश्वविद्यालयों एवं प्रशासन संस्थाओं में पढ़ाया जाता है।
एनसाइक्लोपीडिया ऑफ एजूकेशनल रिसर्च के अनुसार- “शिक्षा प्रशासन वह प्रक्रिया है जिससे कार्यरत लोगों के प्रयासों को इस प्रकार समन्वित किया जाता है, जिससे मानवीय गुणों का प्रभावशाली ढंग से विकास हो। यह प्रक्रिया केवल बालकों एवं नवयुवकों के विकास तक ही सीमित नहीं है, इसके अन्तर्गत प्रौढ़ कार्यकर्ताओं के विकास को भी महत्त्व दिया जाता है।”
लेखक उन सभी विद्वानों के प्रति आभारी है, जिनकी कृतियों से पुस्तक के प्रणयन में सहायता ली गई है। प्रस्तुत पुस्तक को मूर्त रुप देने में प्राचार्य डॉ० रघुराज सिंह (हंडिया पी० जी० कॉलेज, हंडिया, इलाहाबाद), प्राचार्य डॉ० सालिक सिंह (लाला लक्ष्मी नारायण डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद), प्राचार्य डॉ० मोहन गुप्ता (सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ), प्रो० राम पदारथ द्विवेदी, प्राचार्य डॉ० अनिल कुमार राय, डॉ० वी० के० सिंह, डॉ० जे० पी० दुबे, डॉ० ममता भटनागर, डॉ० अरुणा मिश्रा, पूर्व प्राचार्य डॉ० घनश्याम सिंह, प्राचार्य डॉ० मया शंकर सिंह, प्राचार्य डॉ० वी० के० सिल्वा दुराई, श्री इन्द्रपाल सिंह (प्रवक्ता), डॉ० सुरेश द्विवेदी (विभागाध्यक्ष), डॉ० धर्मन्द्र सिंह (वरिष्ठ प्रवक्ता), श्री राम नारायण सिंह, श्री रुद्र प्रताप सिंह, सुनील कुमार सिंह, प्रियंका सिंह, शिखा सिंह, प्रकाशक श्री विनय रखेजा जी (आर० लाल बुक डिपो), श्री संजय शर्मा एवं अरविन्द कुमार (लेजर टाइप सैटर) ने सहयोग
एवं निरंतर प्रेरणा प्रदान किया, इसके लिए लेखक अपना हार्दिक आभार ज्ञापित करता है। अन्त में, उन समस्त सुधी पाठकों एवं शिक्षाविदों का लेखक आभारी रहेगा जो पुस्तक की कमियों तथा
अशुद्धियों की ओर ध्यानाकर्षण करायेंगे तथा भावी संस्करण के संशोधन हेतु अपने रचनात्मक सुझाव भेजने की
कृपा करेंगे।
9, जुलाई, 2014
डॉ० गया सिंह
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