प्रस्तावना
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) ने इस बात पर विशेष बल दिया है कि यहां तक संभव हो शारीरिक रूप से बाधित, अपंग और अन्य असमर्थी बालकों की शिक्षा सामान्य बालकों के साथ होनी चाहिए। केवल गम्भीर रूप से क्षति ग्रस्त, बाधित या अपंगों को विशेष शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश दिया जाए। कोठारी आयोग ने समन्वित शिक्षा की भी घोषणा की। बाधितों की शिक्षा को मुख्य धारा में सम्मिलित करने के परिणामस्वरूप विशेष शिक्षा पृथक्कीरण से समाविष्ट विद्यालय की ओर अग्रसर हुई।
अपंग, बाधित और असमर्थी बालकों को सामान्य अधिकार प्राप्त हैं और ये समाज में राष्ट्र की मुख्य धारा के जुड़ने के बराबर के भागीदार हैं। यदि इन बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा दी जाए तो इनके अन्दर सामाजिक गुण तथा आपसी सहयोग की भावना स्वतः ही विकसित होगी। विभिन्न प्रकार के समूह समाज में बराबर के भागीदार बनते हैं और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार के समावेशी विद्यालय सब को साथ लेकर चलते हैं (‘उनकी व्यक्तिगत, आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए) बालकों के बौद्धिक, संवेगात्मक एवं सृजनात्मक विकास के अतिरिक्त परस्पर सीखने-सिखाने तथा अभियोजन का एक अनूठा प्रयास है।
प्रस्तुत पुस्तक समावेशी शिक्षा एवं विद्यालय के सभी महत्त्वपूर्ण पक्षों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालयों के नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार लिखी गई है। यह पुस्तक समावेशी विद्यालय से जुड़े सभी मौलिक संप्रत्यय की सरल, सुस्पष्ट एवं बोद्धगम्य भाषा में व्याख्या करती है।
मैं उन छात्रों तथा सहयोगियों की आभारी हूं जिन्होंने मुझे इस पुस्तक को लिखने के लिए प्रेरित किया। इस पुस्तक की रचना हेतु जिन शिक्षाविदों, विद्वानों के अमूल्य ग्रन्थों से जो सहायता ली गई है; मैं उन सभी की आभारी हूं। पुस्तक में सुधार हेतु सकारात्मक और ठोस सुधार आमन्त्रित हैं।
मैं पुस्तक के प्रकाशक अमित प्रकाशन, जालन्धर के प्रति भी आभारी हूं, जिन्होंने इस पुस्तक को थोड़े समय में अत्युत्तम ढंग से प्रस्तुत किया है। आशा है कि यह पुस्तक शिक्षक एवं शिक्षार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
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