भारतवर्ष एक संस्कार प्रधान देश है। इसकी परम्पराएँ तथा प्राचीन संस्कृति का प्रभावकारी दृश्य सम्पूर्ण विश्व में प्रकाशित है। हमारी गं। वमयी परम्पराओं का स्वरूप रामायणकालीन तथा महाभारतकालीन व्यवस्थाओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस काल में बालकों की विविध कथाएँ हमारी शैक्षिक परम्पराओं तथा सीखने-सिखाने की पद्धतियों का स्पष्ट प्रस्फुटन करती हैं। प्राचीनकाल में गुरु का सम्बन्ध समुदाय तथा अभिभावकों के साथ अभीष्ट रूप से जुड़ा रहता था। इस कारण गुरुकुल कालीन शिक्षा का प्राधान्य उस समय अपने चरम पर था। बालक के माता-पिता भी गुरु-शिष्य परम्परा का पूर्ण निष्ठा के साथ पालन किया करते थे। इसी परम्परा को आज एन. टी. टी. शिक्षा में लागू करते हुए इस समुदाय तथा अभिभावकों के साथ कार्य सम्पादन प्रश्न पत्र को पूर्ण आस्था के साथ लागू किया गया है।
इस विषय के माध्यम से नरसरी अध्यापक को समुदाय एवं समाज की विषद् जानकारी हो सकेगी। इसके साथ ही उसे समाज की आवश्यकता तथा इसके महत्त्व की समझ पैदा हो सकेगी। एक अध्यापक को अभिभावकों के साथ कार्य सम्पादन करते समय कैसा व्यवहार करना होगा, इसका भी अभ्यास करने की आवश्यकता है। सामुदायिक कार्यक्रमों में शिक्षण के प्रभाव को समझा जा सकेगा। समुदाय तथा समाज में कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं ? उनके प्रति एन. टी. टी. शिक्षक में जागरुकता तथा समझ उत्पन्न करना इस विषय का उद्देश्य है। इस विषय के द्वारा शिक्षक समुदाय तथा अभिभावकों से सम्पर्क करने की विधियों को भी समझ सकेगा। साथ ही सामुदायिक कार्यों के लिये आयोजनात्मक पद्धति तथा विशेषताओं का ज्ञान भी आवश्यक है। प्रस्तुत पुस्तक विविध प्रसंगों पर एक विषय संगठनात्मक लेखन में लघु प्रयास है • आशा है यह आपका प्रयोजन हल करने में सफल हो सकेगी। किसी भी प्रकार के संशोधन इत्यादि के लिये आप हमारा ध्यानाकर्षण अवश्य करेंगे।
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